________________
40
भद्रबाहुसहिता
हो, मस्तक रेखा सीधी और स्वच्छ हो, बुधांगुली का प्रथम पर्व लम्बा हो, गुरु की अंगुली सीधी हो तथा सूर्य पर्वत उठा हो वह दयालु न्यायाधीश होता है। जिसकी अंगलियाँ लम्बी और आस-पास सटी हों, अंगूठा लम्बा और सीधा हो, मस्तक रेखा सीधी और सर्पाकृति की हो तथा हथेली चपटी हो तो व्यक्ति बैरिस्टर या वकील होता है। __जिसके हाथ का गुरुपर्वत और तर्जनी लम्बी हो, चन्द्रपर्वत उच्च हो तथा बुधांगुली नुकीली हो, साथ ही मस्तकरेखा लम्बी और नीचे झुकी हो तो वह व्यक्ति दर्शनशास्त्र का विद्वान् होता है। जिसके शनि और गुरुक्षेत्र उच्च हों, शनिपर्वत पर त्रिकोण चिह्न हो और सूर्य रेखा शुद्ध हो वह व्यक्ति योगी या साधु होकर पूर्ण गौरव पाता है। जिसका अंगूठा मोटा और टेढ़ा हो, उसकी इच्छा-शक्ति प्रबल होती है । जिसके हाथ में बड़ा चतुष्कोण या पुष्करणी रेखा हो, वह सब मनुष्यों में श्रेष्ठ और सब का स्वामी होता है। हथेली के मध्य में कलश, स्वस्तिक, मृग, गज, मत्स्य आदि के चिह्न शुभ माने जाते हैं। __अंगूठे के मूल में जितनी स्थूल रेखाएं हों उतने भाई और जितनी सूक्ष्म रेखाएं हों उतनी बहिन होती हैं । अंगूठे के अधोभाग में जिसके जितनी रेखाएं हों, उसके उतने ही पुत्र होते हैं । जितनी रेखाएं सूक्ष्म होती हैं उतनी ही कन्याएं होती हैं । जितनी रेखाएं छिन्न-भिन्न होती हैं, उतनी सन्तानें मृत और जितनी रेखाएं अखण्ड और सम्पूर्ण होती हैं उतने बालक जीवित रहते हैं ।
स्वप्न निमित्त-स्वप्न द्वारा शुभाशुभ का वर्णन करना इस निमित्तज्ञान का विषय है । दृष्ट, श्रुत, अनुभूत, प्रार्थित, कल्पित, भाविक और दोषज इन सात प्रकार के स्वप्नों में से भाविक स्वप्न का फल यथार्थ निकलता है । स्वप्न भी कर्मफल का सूचक है, आगामी शुभाशुभ कर्मफल की सूचना देता है । सूचक निमित्तों में स्वप्न का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। स्वप्नों का फलादेश इस ग्रन्थ के 26 वें अध्याय में तथा परिशिष्ट रूप में अंकित 30 वें अध्याय में विस्तार के साथ लिखा गया है। अतः यहाँ स्वप्नों का फलादेश नहीं लिखा जा रहा है।
निमित्तज्ञान का अंगभून प्रश्नशास्त्र–प्रश्नशास्त्र निमित्तज्ञान का एक प्रधान अंग रहा है। इसमें धातु, मूल, जीव, नष्ट, मुष्टि, लाभ, हानि, रोग, मृत्यु, भोजन, शयन, जन्म, कर्म, शल्यानयन, सेना गमन, नदियों की बाढ़, अवृष्टि, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, फसल, जय-पराजय, लाभालाभ, विद्यासिद्धि, विवाह, सन्तान लाभ, यशः प्राप्ति एवं जीवन के विभिन्न आवश्यक प्रश्नों का उत्तर दिया गया है। जैनाचार्यों ने अष्टांगनिमित्त पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। प्रस्तुत प्रश्नशास्त्र निमित्तज्ञान का वह अंग है जिसमें बिना किसी गणित क्रिया के त्रिकाल की बातें बतलायी जाती हैं । ज्ञानदीपिका के प्रारम्भ में कहा है