________________
भद्रबाहुसंहिता
परोपकारी, गुरुजनों का भक्त, सुन्दर आकृति वाला, बुद्धिमान्, मधुरभाषी, कलाकौशल में अभिरुचि रखने वाला, धार्मिक और सन्तान वाला होता है । मंगल क्षेत्र की ओर झुके रहने से व्यक्ति सदाचारी, ज्ञानी, साहित्यकार, शिल्पकला विशारद, वैज्ञानिक और कुशल डॉक्टर होता है ।
चन्द्रस्थान उच्च होने से मनुष्य संगीतप्रिय, भगवद्भक्त, विषण्ण और चिन्तायुक्त होता है । इस प्रकार का व्यक्ति प्रायः संसार से विरक्त होता है और संन्यासी का जीवन व्यतीत करता है ।
38
पितृरेखा के सन्निकटस्थ मंगल का स्थान उच्च हो तो वह व्यक्ति असीम साहसी, विवादप्रिय और विशिष्ट बुद्धिमान् होता है । हस्त पार्श्वस्थ मंगल स्थान उच्च होने से वह व्यक्ति अन्याय कार्य में प्रवृत्त नहीं होता तथा धीर, नम्र, धार्मिक साहसी और दृढ़प्रतिज्ञ होता है । दोनों स्थान समान उच्च होने से वह व्यक्ति उग्र स्वभाव सम्पन्न, कामातुर, निष्ठुर और अत्याचारी होता है। मंगलस्थान के नीचे होने से व्यक्ति भीरु, मन्दबुद्धि और पुरुषार्थहीन होता है । मंगल का स्थान कठिन होने से स्थावर सम्पत्ति की वृद्धि होती है । मंगल उच्च का सर्वांग सुन्दर रूप में हो तो व्यक्ति मिल या अन्य बड़े-बड़े उद्योग धन्धों को करता है । मंगल मनुष्य की कार्य क्षमता की सूचना देता है ।
बुध का स्थान उच्च होने से शास्त्रज्ञान में परायण, भाषण में पटु, साहसी, परिश्रमी, पर्यटनशील और कम अवस्था में ही विवाह करने वाला होता है । बुध जिसका उच्च का हो और साथ ही चन्द्रमा भी उच्च का हो तो व्यक्ति लेखक, कवि या साहित्यकार बनता है । सफल नेता भी इस प्रकार की रेखा वाला व्यक्ति होता है । कन्या सन्तान इस प्रकार के व्यक्ति को अधिक उत्पन्न होती हैं । कुछ आचार्यों का अभिमत है कि जिसके हाथ में बुध उच्च का हो, वह व्यक्ति डॉक्टर या अन्य प्रकार का वैज्ञानिक होता है । ऐसे व्यक्तियों को नयी-नयी वस्तुओं के गुण-दोष आविष्कार में अधिक सफलता मिलती है । बुध का पर्वत नीचे की ओर झुका हो और मंगल का पर्वत उन्नत हो तो व्यक्ति नेता होता है ।
गुरु का स्थान अत्युच्च होने से व्यक्ति अधार्मिक और अहंकारी होता है । इस व्यक्ति में शासन करने की अपूर्व क्षमता होती है । न्याय और व्याकरण शास्त्र का ज्ञाता उच्च स्थानीय व्यक्ति होता है । गुरु के पर्वत के निम्न होने से व्यक्ति दुराचारी, दुःखी और लम्पट होता है ।
शुक्र का स्थान अत्युच्च होने से व्यक्ति लम्पट, लज्जाहीन और व्यभिचारी होता है । उच्च होने से सौन्दर्यप्रिय, नृत्यगीतानुरक्त, कलाविज्ञ, धनी और शिल्पविद्या में पटु होता है। शुक्र के स्थान के निम्न होने से व्यक्ति स्वार्थी, आलसी और रिपुदमनकारी होता है। एक मोटी रेखा शुक्र के स्थान से निकलकर पितृरेखा के ऊपर होती हुई मंगल स्थान में जाये तो व्यक्ति को दमा और खांसी का रोग होता