Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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श्री कन्हैयालाल 'कमल'
४. सूर्य का नक्षत्रों से संयोग
५. सूर्य का ताराओं से सयोग सूर्य-चन्द्रप्राप्ति के सूत्रों का विवरण :(अ) १. चन्द्र, सूर्य के संयुक्त सूत्र
२. चन्द्र, सूर्य, ग्रह के संयुक्त सूत्र ३. चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र के संयुक्त सूत्र
४. चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, ताराओं के संयुक्त सूत्र (ब) १. ग्रहों के सूत्र
२ नक्षत्रों के सूत्र
३. ताराओं के सूत्र (स) १. काल के भेद-प्रभेद
२. अहोरात्र के सूत्र ३. संवत्सर के सूत्र ४. औपमिक काल के सूत्र
५. काल और क्षेत्र के सूत्र दोनों प्रज्ञप्तियों की नियुक्ति आदि व्याख्याएं : --
द्वादश उपांगों के वर्तमान मान्यक्रम में चन्द्रप्रज्ञप्ति छठा और सूर्यप्रज्ञप्ति सातवाँ उपाग है - इसलिए आचार्य मलयगिरि ने पहले चन्द्रप्रज्ञप्ति की वृत्ति और बाद में सूर्यप्रज्ञप्ति की वृत्ति रची होगी?
यदि आचार्य मलयगिरि कृत चन्द्रप्रज्ञप्ति-वृत्ति कहीं से उपलब्ध है तो उसका प्रकाशन हुआ है या नहीं ? या अन्य किसी के द्वारा की गई नियुक्ति, चूणि या टीका प्रकाशित हो तो अन्वेषणीय है। o आचार्य मलयगिरि ने सूर्यप्रज्ञप्ति की वृत्ति में लिखा है सूर्यप्रज्ञप्ति नियुक्ति नष्ट हो गई है' अतः गुरु कृपा से वृत्ति की रचना कर रहा हूँ। नामकरण और विभाजन :--
सभी अंग-उपांगों के आदि या अन्त में कहीं न कहीं उनके नाम उपलब्ध हैं किन्तु इन दोनों उपांगों की उत्थानिका या उपसंहार में चन्द्रप्रज्ञप्ति या सूर्यप्रज्ञप्ति का नाम क्यों नहीं है ? यह एक विचारणीय प्रश्न है।
दो उपांगों के रूप में इनका विभाजन कब और क्यों हुआ? यह शोध का विषय है। ग्रह, नक्षत्र, तारा ज्योतिषी देव हैं -इनके इन्द्र है चन्द्र सूर्य-ये दोनों ज्योतिषगणराज हैं। १. अस्या नियुक्तिरभूत, पूर्व श्री भद्रबाहुसूरि कृता । ___ कलिदोषात् साउनेशद् व्याचक्षे केवलं सूत्रम् ।। २ सूर्यप्रज्ञप्तिमहं गुरूपदेशानुसारतः किञ्चित् ।
विवृणोमि यथाशक्ति स्पष्टं स्वपरोपकाराय ॥ सूर्य० प्र० वृत्ति० प्र०।
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