Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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श्री कन्हैयालाल 'कमल' उदय और अस्त के समय सूर्य के दूर तथा मूल में दीखने का कारण
भग० श० ८, उ०८, स० ३६ सूर्य की त्रैकालिक गति
भग० श० ८, उ०८, सू० ३८ सूर्य की त्रैकालिक क्रिया
भग० श० ८, उ० ८, सू० ४३, ४४ सूर्य का ऊर्ध्व, अधो तापक्षेत्र प्रमाण
भग० श० ८, उ० ८, सू० ४५ सूर्य का छहों दिशाओं में त्रैकालिक प्रकाश
भग० श० ८, उ० ८, सू० ३९-४० सूर्य का छहों दिशाओं में त्रैकालिक उद्योत
भग० श०८, उ० ८, सू० ४१ उदय और अस्त के समय समान अन्तर से सूर्यदर्शन
भग० श० १, उ० ६, सू० १ उदय और अस्त के समय सूर्य दर्शन
भग० श० ८, उ० ८, सू० ३५ उदय के समय प्रकाशित क्षेत्र जितना ही सूर्य का तापक्षेत्र
भग० श० १, उ०६, सू० ४ जम्बूद्वीप में सूर्य की उदयास्त दिशायें तथा दिन-रात का प्रमाण
भग० श० ५, उ० १, सू० ४.६ लवणसमुद्र, धातकोखण्ड. कालोदसमुद्र और पुष्करार्धद्वीप में सूर्य को उदयास्त दिशायें तथा दिन-रात का प्रमाण--
भग० श० ५, उ० १, सू० २२-२७ चन्द्र के उदयास्त का प्ररूपण
भग० श० ५, उ० १०, सू० १ चन्द्र को अग्रमहिषो संख्या
भग० श० १०, उ० ५, सू० २८
भग० श० १२, उ० ६, सू० ६,७ चन्द्र-सूर्य शब्दों के विशेषार्थ
भग० श० १२, उ० ६, सू० ४-५ चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहणचन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डलप्रतिचन्द्र प्रतिसूर्य
भग० श० ३, उ०७, सू० ४, ५ चन्द्र और सूर्य के काम-भोगों की विशेषता
भग० श० १२, उ० ६, सू०८
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