Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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कालिदास की रचनाओं में अहिंसा की अवधारणा
___ डा. रविशंकर मिश्र
कालिदास शैव थे,' तथापि उनकी रचनाओं के सम्यकालोचन से ऐसा प्रतिभासित होता है कि वे जैन धर्म की अहिंसावादी शिक्षाओं से काफी प्रभावित थे। इस तथ्य के प्रमाणस्वरूप उनकी रघुवंश, कुमारसम्भव, शाकुन्तल आदि रचनाएँ हमारे सामने हैं। जैन धर्म के सर्वप्रमुख सिद्धान्तअहिंसा का उनके ग्रन्थों में पर्याप्त निदर्शन मिलता है। रघुवंश कालिदास का सर्वप्रमुख महाकाव्य है, जिसमें रघु-वंश का सम्पूर्ण इतिहास लिपिबद्ध है तथा जिसके प्रमुख नायक रघु हैं। अश्वमेध यज्ञ हेतु राजा दिलीप द्वारा छोड़े गये अश्व का देवराज इन्द्र द्वारा हरण कर लिये जाने पर कुमार रघु ने-जो उस अश्व के रक्षार्थ नियुक्त थे-उसे परास्त कर, उससे, अश्व को माँगा। परन्तु रघु के पराक्रम पर प्रसन्न इन्द्र ने, अश्व के अतिरिक्त अन्य कोई वर माँगने को कहा। इस पर रघु ने प्रार्थना करते हुए इन्द्र से कहा कि यदि आप यज्ञ का यह अश्व नहीं देना चाहते हैं तो मुझे ऐसा वर दीजिये कि मेरे पूज्य पिता को, बिना इस अश्व की बलि दिये हिंसा किये ही, इस अश्वमेध यज्ञ का पूरा फल प्राप्त हो जाये
अमोच्यमश्वं यदि मन्यसे प्रभो ततः समाप्ते विधिनैव कर्मणि ।
अजस्रदीक्षाप्रयतः स मद्गुरुः क्रतोरशेषेण फलेन युज्यताम् ॥ [हे प्रभु ! यदि आप अश्व को छोड़ने योग्य नहीं समझते तो निरन्तर यज्ञानुष्ठान में प्रयत्नशील मेरे पिता, विधिपूर्वक इस यज्ञ की समाप्ति होने पर जो भी फल होता है, उसे पूर्ण रूप से प्राप्त करें।]
इस प्रसङ्ग में कवि ने जहाँ कुमार रघ के अपार पराक्रम एवं विनयशीलता का बोध कराया है, वहीं क्या हम यह नहीं कह सकते कि शैव धर्मावलम्बी होते हुए भी कवि इन यज्ञों में होने वाली
१. (क) संस्कृत साहित्य का इतिहास : बलदेव उपाध्याय (भाग प्रथम), पृ०.१४५. (ख) संस्कृत साहित्य का इतिहास : ए० बी० कोथ, हिन्दी भाषान्तरकार : मंगलदेव शास्त्री,
पृ० १२२-१२३. (ग) महाकवि कालिदास : डा० रमाशंकर तिवारी, पृ० ६३.
(घ) भारती कवि विमर्श : पं० रामसेवक पाण्डेय, पृ० ११. २. ज्ञातव्य है कि इस आश्वमेधिक अश्व की यज्ञ में बलि दे दी जाती है- शतपथब्राह्मण,
१३/१-५; इसके अतिरिक्त तैत्तिरीयब्राह्मण, ३/८-९; कात्यायनीय श्रौतसूत्र, २०: आपस्तम्ब,
आश्वलायन (२०; १०/६) आदि में भी। ३. रघुवंश : महाकवि कालिदास, ३/६५ ।
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