Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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उग्रादित्याचार्य का रसायन के क्षेत्र में योगदान
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मानसिक विचार शक्ति, हेयोपादेय ज्ञान, सामान्य क्रियाक्षमता एवं विवेक को दूषित करता है । यह अनेक रोगों को उत्पन्न करता है और मनुष्य की गरिमा को हीन बनाता है ।
भोजन के तीन प्रधान चरण होते हैं। पहले चरण में स्निग्ध मधुर ( हलुआ - खीर आदि) खाने चाहिये। दूसरे चरण में खट्टे और नमकीन पदार्थ खाने चाहिये। तीसरे चरण में द्रव पदार्थ लेने चाहिये । प्रत्येक भोजन में शाक-भाजी, कांजी और दूध अवश्य लेना चाहिये । भोजन के पाक से रस, रुधिर, मांस, भेद, अस्थि मज्जा और वीर्य नामक सात धातुयें शरीर में निर्मित होती हैं ।
इन पदार्थों के अतिरिक्त अनेक प्रकार की वनस्पतियों के गणों का भी वर्णन किया गया है । यह स्पष्ट है कि यह वर्णन आचार्यों की तीक्ष्ण निरीक्षण शक्ति एवं अनुभवसामर्थ्य का सङ्केतक है । इसमें सैद्धान्तिक व्याख्या समाहित नहीं है ।
(स) खनिज एवं अन्य रासायनिक का विवरण
ग्रन्थ में उस समय औषधियों के रूप में प्रयुक्त आने वाले अनेक खनिजों एवं रासयनिक पदार्थों के नाम दिये गये हैं । इसके अन्तर्गत हरताल, नीलांजन, कसीस ( फेरस सल्फेट ), फिटकरी ( ऐलम ), गेरू ( आयरन ऑक्साइड ), पंचलवण, तूतिया ( कापर सल्फेट ), दीपांजन (काजल) मैल (आर्सेनिक सल्फाइड), शिलाजीत ( विटुमैन ), माक्षिक ( पायराइट्स ), वंसलोचन, स्फटिकमणि आदि पदार्थों का उल्लेख है । धातुओं में सोना, चांदी, तांबा, लोहा, सीसा एवं कांसे का नाम है । इनकी भस्मों का भी उल्लेख है। इसके अतिरिक्त, शंख, मोती, प्रवाल, पारद भस्मों का भी उल्लेख है । इनके बनाने की विधियां भी दी गई हैं। कपूर, बज्रक्षार एवं गन्धक के भी अनेक उपयोग दिये गये हैं । रेशमी कपड़े की भस्म को रक्तस्राव रोकने में उपयोगी बताया गया है ।
क्षारीय पदार्थ तीन काम करते हैं—छेदन, भेदन और लेखन । ये वनस्पतियों की भस्मों को पानी में उबालकर प्राप्त किये जाते हैं । ये तनु (स्वल्प द्रव) और सान्द्र (अति द्रव) दोनों होते हैं। ये चिकने और सफेद होते हैं । आज की भाषा में मुख्यतः पोटैसियम कार्बोनेट ( यवक्षार) के विलयन हैं। घावों को क्षारों से धोया जाता है जिससे वे पक न सकें । ये पूतिरोधी होते हैं । चिकित्सक को क्षार कर्म अवश्य जानना चाहिये। यह बताया गया है कि औषध के पन्द्रह कार्यों आधे से अधिक ऐसे होते हैं जिनमें रासायनिक प्रक्रियायें काम आती हैं ।
(a) विष वर्णन
विष वे पदार्थ हैं जो शरीर के बाह्य या अन्तर्ग्रहण से कष्ट पहुँचावे, शरीरक्रिया में बाधक बने । विषों का वर्णन कौटिल्य एवं सुश्रुत ने किया है और विषज्ञ भिषक की आवश्यकता राजकुल अनिवार्य बताई है। सुश्रुत के दो प्रकारों की तुलना में उग्रादित्य ने इन्हें तीन प्रकार का बताया है और उसके वर्गीकरण भी किये हैं
१.
कल्याणकारक, पृ० ५५. २. वही, अध्याय १९ पृ० ४८०.
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