Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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दशरथ गोंड कणि जातक' के अनुसार यह सरोवर अनेक घाटों से युक्त होता है, इसमें बुद्धों, प्रत्येक-बुद्धों आदि के अपने-अपने निश्चित घाट होते हैं। वस्तुतः बौद्धों की अनोतत्त-सरोवर की कल्पना अत्यन्त मनोरम कल्पना है और विद्वानों ने इसे सम्पूर्ण सृष्टि के प्रतीक के रूप में देखा है। उपर्युक्त जातक के विवरण से भी इसका गम्भीर प्रतीकात्मक महत्त्व ध्वनित होता है, क्योंकि उसमें बुद्धों, प्रत्येक-बुद्धों के घाट के साथ-साथ भिक्षुओं, तपस्वियों, चातुर्महाराजिक आदि स्वर्ग के देवताओं के अपने-अपने घाटों की भी चर्चा है।
जातक प्रत्येक बुद्धों के भिक्षाटन के लिए निकलने की भी चर्चा करते हैं। महामोर जातक प्रातःकाल को प्रत्येक-बुद्धों के भिक्षाटन का उचित समय बताता है। खदिरंगार जातक' से यह ज्ञात होता है कि वे एक सप्ताह के ध्यान के बाद उठकर भिक्षाटन के लिए निकलते । खदिरंगार और कुम्भकार जातक' में प्रत्येक बुद्धों के भिक्षाटन यात्रा के प्रारम्भ का सुन्दर वर्णन है। यह सोचकर कि आज अमुक स्थान पर जाना चाहिए, प्रत्येक-बुद्ध नन्दमूल-पर्वत क्षेत्र से निकल कर, अनोतत्त सरोवर पर नागलता की दातुन कर, नित्य-कर्म से निवृत्त हो, मनोशिला पर खड़े हो, काय-बन्धन बाँध, चीवर धारण कर, ऋद्धिमय मिट्टी का पात्र ले, आकाश मार्ग से भिक्षा के लिए गन्तव्य स्थान को जाते । महाजनक जातक के ६ अनुसार सप्ताह भर पानी बरसने पर भी भींगे वस्त्र में ही भिक्षाटन के लिए निकलते।
जातकों में प्रत्येक-बुद्धों के प्रति भक्तिभाव और उनकी पूजा के भी पर्याप्त सन्दर्भ प्राप्त होते हैं । महाजनक जातक में प्रत्येक बुद्ध के लिए "सुरियुग्गमणेनिधि' विशेषण का प्रयोग किया गया है, जिसका यह तात्पर्य बताया गया है कि सूर्य के समान होने से प्रत्येक-बुद्ध ही सूर्य है। निश्चय ही इस उपाधि से समाज में प्रत्येक-बुद्धों के आदरास्पद होने का संकेत मिलता है। धम्मद्ध, धजविहेठ और दरीमुख जातक' से यह अभिव्यक्त होता कि मुण्डित शिर वाले प्रत्येकबुद्ध को देखकर जनता सिर पर हाथ जोड़कर प्रणाम करती तथा विदा करते समय जब तक वे आँख से ओझल नहीं हो जाते,तब तक दस नखों के मेल से अन्जलि को मस्तक पर रखकर नमस्कार करती रहती । पानीय व कुम्भकार जातक से ज्ञात होता है कि उपासक उनकी प्रशंसा में यह स्तुति कहते कि "भन्ते ! आपकी प्रव्रज्या और ध्यान आपके ही योग्य है।" भिक्खा परम्पर
१. जातक ३८२, खण्ड ३, पृ० ४१४ । २. इसके विषय में देखिये मलालशेखर : डिक्शनरी ऑफ पालि प्रापर नेम्स, सन्दर्भ । ("अनोतत्त')
और अग्रवाल, वासुदेवशरण : भारतीय कला, पृ० ६९, ११४ और चक्रध्वज, पृ० ३६ । ३. जातक ४९१, खण्ड ४, पृ० ५४६ । ४ जातक ४०, खण्ड १, पृ० ३४९ । ५ जातक ४०, खण्ड १, पृ० ३४९; और ४०८, खण्ड ४, पृ० ४० । ६. जातक ५३९, खण्ड ६, पृ० ६१, (गाथा १११)। ७. जातक ५३९, खण्ड ७, पृ० ४६-४७ । ८. जातक २२०, खण्ड २, पृ० ३९२; ३९१, खण्ड ३, पृ० ४५४; और ३७८, खण्ड ३, पृ० ४०२ । ९. जातक ४५९, खण्ड ४, पृ० ३१७-३१८; और ४०८, खण्ड ४, पृ० ४१ ।
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