Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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आगमिक गच्छ/प्राचीन त्रिस्तुतिक गच्छ का संक्षिप्त इतिहास
२५३
आनन्दप्रभसूरि
मुनिरत्नसूरि मुनिसागरसूरि आनन्दरत्नसूरि
उदयधर्मसूरि [धर्मकल्पद्रुम के रचनाकार
अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा इस पट्टावली के अंतिम चार आचार्यों का जो तिथिक्रम प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है----
मुनिसिंहसूरि द्वारा वि० सं० १४९९ कार्तिक सुदी ५ सोमवार को प्रतिष्ठापित भगवान् शान्तिनाथ की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसी प्रकार मुनिसिंहसूरि के शिष्य शीलरत्नसूरि द्वारा वि० सं० १५०६ से वि० सं० १५१२ तक प्रतिष्ठापित ५ प्रतिमायें मिलती हैं। शीलरत्नसूरि के शिष्य आनन्दप्रभसूरि द्वारा वि० सं० १५१३ से वि० सं० १५२७ तक प्रतिष्ठापित ६ प्रतिमायें प्राप्त होती हैं। आनन्दप्रभसूरि के शिष्य मुनिरत्नसूरि द्वारा वि० सं० १५२३ और वि० सं० १५४२ में प्रतिष्ठापित २ जिन प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं। अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा ही मुनिरत्नसूरि के शिष्य आनन्दरत्नसूरि का भी उल्लेख प्राप्त होता है । उनके द्वारा प्रतिष्ठापित ५ तीर्थङ्कर प्रतिमायें मिली हैं, जो वि० सं० १५७१ से वि० सं० १५८३ तक की हैं । उक्त बात को तालिका के रूप में निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है
सोमतिलकसूरि सोमचन्द्रसूरि गुणरत्नसूरि मुनिसिंहसूरि [वि० सं० १४९९ ] १ प्रतिमा लेख शीलरत्नसूरि [ वि० सं० १५०६-१५१२ ] ५ प्रतिमा लेख आनन्दप्रभसूरि [ वि० सं० १५१३-१५२७ ] ६ प्रतिमा लेख मुनिरत्नसूरि [वि० सं० १५२३-१५४२ ] २ प्रतिमा लेख आनन्दरत्नसूरि [ वि० सं० १५७१-१५८३ ] ५ प्रतिमा लेख
श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई द्वारा प्रस्तुत आगमिकगच्छ की विडालंबीया शाखा की गुर्वावली इस प्रकार है--
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