Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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डाँ० शिव प्रसाद
मुनिरत्नसूरि आनन्दरत्नसूरि ज्ञानरत्नसूरि हेमरत्नसूरि
उदयसागरसूरि भानुभट्टसूरि
माणिक्यमंगलसूरि [वि० सं० १६३९ में अंबडरास के रचनाकार [
धर्महससूरि [वि० सं० १६२० के लगभग नववाड ढालबंध के रचनाकार ]
उक्त पट्टावली के आधार पर मुनिसागरसूरि द्वारा रचित आगमिकगच्छपट्टावली में ६ अन्य नाम भी जुड़ जाते हैं। इस प्रकार ग्रन्थ प्रशस्ति, प्रतिमा लेख तया उपरोक्त पट्टावली के आधार पर मुनिसागरसूरि द्वारा रचित पट्टावली अर्थात् आगमिकगच्छ की विडालंबीया शाखा की पट्टावली को जो नवीन स्परूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है----
[ तालिका-२] साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित आगमिकगच्छ [विडालंबीयाशाखा
का वंश वृक्ष शीलगुणस रि देवभद्रस रि धर्मघोषस रि
यशोभद्रस रि सर्वाणंदस रि अभयदेवस रि वज्रसेनस रि जिनचन्द्रस रि
हेमसिंहस रि
रत्नाकरस रि
विजयसिंहस रि अभयसिंहस रि
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