Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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डॉ. शिव प्रसाद
इस प्रकार अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर आगमगच्छ के उक्त मुनिजनों का जो पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित होता है, वह इस प्रकार है
अमरसिंहसूरि [ वि० सं० १४५१-१४८३ ] हेमरत्नसूरि [ वि० सं० १४८४-१५२१ ] अमररत्नसूरि [ वि० सं० १५२४-१५४७ ] सोमरत्नसरि [ वि० सं० १५४८-१५८१ ]
पूर्व प्रदर्शित पट्टावलियों की तालिका में श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई द्वारा आगमिकगच्छ और उसकी दोनों शाखाओं की अलग-अलग प्रस्तुत की गई पट्टावलियों को रखा गया है। देसाई द्वारा दी गयी आगमिकगच्छ की गुर्वावली शीलगुणसूरि से प्रारम्भ होकर हेमरत्नसूरि तक एवं धंधकीया शाखा की गुर्वावली अमररत्नसूरि से प्रारम्भ होकर मेघरत्नसरि तक के विवरण के पश्चात् समाप्त होती है। ये दोनों गुर्वावलियां मुनि जिनविजय जी द्वारा दी गई धंधूकीयाशाखा की गुर्वावली [ जो शीलगुणसूरि से प्रारम्भ होकर मेघरत्नसरि तक के विवरण के पश्चात् समाप्त होती है ] से अभिन्न हैं अतः इन्हें अलग-अलग मानने और इनकी अप्रामाणिकता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है।
अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा ज्ञात पूर्वोक्त चार आचार्यों [ अमरसिंहसूरि-हेमरत्नसूरिअमररत्नसूरि-सोमरत्नसूरि ] के नाम इसी क्रम में धंधूकीया शाखा की पट्टावली में मिल जाते हैं। इसके अतिरिक्त ग्रंथप्रशस्तियों द्वारा आगमिक गच्छ के मुनिजनों के जो नाम ज्ञात होते हैं, उनमें से न केवल कुछ नाम धंधूकीयाशाखा की पट्टावली में मिलते हैं, बल्कि इस शाखा के साधुमेरुसूरि, कल्याणराजसूरि, क्षमाकलशसूरि, गुणमेरुसूरि, मतिसागरसूरि आदि ग्रन्थकारों के बारे में केवल उक्त ग्रंथप्रशस्तियों से ही ज्ञात होते हैं।
__ इस प्रकार धंधकीया शाखा की परम्परागत पट्टावली में उल्लिखित अभयसिंहसरि, अमरसिंहसूरि, हेमरत्नसूरि, अमररत्नसूरि, सोमरत्नसूरि आदि आचार्यों के बारे में जहाँ अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा कालनिर्देश की जानकारी होती है, वहीं ग्रन्थप्रशस्तियों के आधार पर इस शाखा के अन्य मुनिजनों के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है। .
साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के संयोग से आगमिकगच्छ की धंधूकीया शाखा की परम्परागत पट्टावली को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है--
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