Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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डॉ० शिव प्रसाद
__ अध्ययन की सुविधा के लिये दोनों शाखाओं का अलग-अलग विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है। इनमें सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों के विवरणों की विवेचना की गयी है।
__ साहित्यिक साक्ष्य १- पुण्यसाररास'--यह कृति आगमगच्छीय आचार्य हेमरत्नस रि के शिष्य साधुमेरु द्वारा वि० स० १५०१ पौषवदि ११ सोमवार को धंधूका नगरी में रची गयी। कृति के अन्त में रचनाकार ने अपनी गुरुपरम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है--
अमरसिंहसूरि हेमरत्नसूरि
साधुमेरु [रचनाकार २- अमररत्नसूरिफागु२ मरु-गुर्जर भाषा में लिखित १८ गायाओं की इस कृति को श्री मोहनलाल दर्लाचन्द देसाई ने वि० सम्वत् की १६वीं शती की रचना मानी है। इस कृति में रचनाकार ने अपना परिचय केबल अमररत्नस रिशिष्य इतना ही बतलाया है। यह रचना प्राचीनफागुसंग्रह में प्रकाशित है।
अमररत्नसूरि
अमररत्नसूरिशिष्य ३- सुन्दरराजारास-आगमगच्छीय अमररत्नस रि की परम्परा के कल्याणराजस रि के शिष्य क्षमाकलश ने वि० सं० १५५१ में इस कृति की रचना की। क्षमाकलश की दूसरी कृति ललिताङ्गकुमाररास वि० सं० १५५३ में रची गयी है। दोनों ही कृतियाँ मरु-गूर्जर १. आषाढादि पनर अकोतरइ, पोस वदि इग्यारिसि अंतरइ।
धंधकपुरि कृपारस सत्र, सोमवारि समाथिउ अ चरित्र ।। कुमतरुख वणभंग गइंद, जिनशासन रयणायर इंदु । सद्गुरुश्रीअमरसिंहसूरिंद, सेवइं भविय जसुय अरविंद ॥ तसु पाटि नयनानंद अमीबिंदु गुरु, श्रीहेमरत्नसूरिमुणिंद । आगमगच्छ प्रकाश दिणिंद, जस दीसइ वर परि यरविंद ।। सुगुरु पसाइं नयर गोआलेर, धणी पुण्यसार रिद्धिउ कुबेर। तासु गुण इम वर्णवइ अजस्त्र, साधुमेरुगणि पंडित मिश्र । देसाई, मोहनलाल दलीचन्द-जैनगूर्जरकविओ (नवीन संस्करण, अहमदाबाद, १९८६ ई०) भाग १,
पृ० ८५ और आगे। २. देसाई, पूर्वोक्त, पृ० ४७८ और आगे ३. वही, पृ० २०१-२०२
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