Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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शिवप्रसाद
प्रतिष्ठापक आचार्य-सुमतिसूरि; प्रतिष्ठास्थल-बड़ा जैन मन्दिर, नाडोल वि. सं. १२५१ ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार' आदिनाथ की परिकर युक्त प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-जैन मन्दिर, बोया, मारवाड़ वि. सं. १२५२ माघ वदि ५ रविवार शान्तिनाथ और कुन्थुनाथ की प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेख वर्तमान प्रतिष्ठा स्थान-सोमचिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात
जैसलमेर ग्रन्थ भण्डार' में बोधकाचार्य के शिष्य सुमतिसूरि द्वारा वि. सं. १२२० में रचित दशवैकालिक टीका उपलब्ध है। बोधकाचार्य और उनके शिष्य सुमतिसूरि किस गच्छ के थे, यह ज्ञात नहीं होता है।
जैसा कि पहले देख चुके हैं, सन्डेरगच्छीय शालिसूरि (प्रथम) द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर वि. सं. ११८१ से वि. सं. १२१५ तक के लेख उत्कीर्ण हैं। इनके शिष्य सुमतिसूरि (प्रथम ) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर वि. सं. १२३६ से १२५२ तक के लेख उत्कीर्ण हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि वि. सं. १२१५ के पश्चात् ही सुमतिसूरि अपने गुरु के पट्ट पर आसीन हुए। ऐसी स्थिति में वि. सं. १२२० में दशवकालिकटीका के रचनाकार सुमतिसूरि को संडेरगच्छीय सुमतिसूरि से अभिन्न मानने में कोई बाधा नहीं प्रतीत होती है।
यशोभद्रसूरि के तृतीय संतानीय एवं शान्तिसूरि (प्रथम) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर वि. सं. १२४५ से वि. सं. १२९८ तक के लेख उत्कीर्ण हैं। नाडोल के चाहमान नरेश का मन्त्री और महामात्य वस्तुपाल का अनन्य मित्र यशोवीर इन्हीं शान्तिसूरि का शिष्य था। यशोवीर ने आबू स्थित विमलवसही में जो देवकुलिकायें निर्मित करायीं, उनमें प्रतिमा प्रतिष्ठापन का कार्य शान्तिसूरि ने ही सम्पन्न किया था। इसी कालावधि वि. सं. १२४५-१२९८ के मध्य वि. सं. १२६६ एवं वि. सं. १२६९ में प्रतिष्ठापित कुछ प्रतिमायें जो संडेरगच्छ से सम्बन्धित हैं, में प्रतिमा
१. विजयधर्मसूरि-पूर्वोक्त, लेखाङ्क २६ २. अमीन, जे० पी०-पूर्वोक्त, पृ० ३२-३३ 3. Catalouge of Sanskrit & Prakrit Mss., Jesalmer Collection P-30-31 नोट:-पूना और खंभात के ग्रन्थ भण्डारों में भी दशवैकालिकटोका की प्रतियां विद्यमान हैं।
जिनरत्नकोश पृ० १७० द्रष्टव्य-Discriptive Catalouge of the Govt. Collection of Mss. Vol. XVIII,
Jaina Literature & Philosophy, Part III No-716: Catalouge of Palm-Leaf Mss in the Shanti Nath Jain Bhandar, Cambay, Part II, P-305; जिनरत्नकोश पृ० १७०;
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