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शिवप्रसाद
६. वि. सं. १३७९ ज्येष्ठ वदि ७'
प्रप्ति स्थान-श्वेताम्बर जैन मन्दिर, रामघाट, वाराणसी ७. वि. सं. १३८८ वैशाख सुदि ५
भगवान् पार्श्वनाथ की पाणाण प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्ति स्थान-चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर ८. वि. सं. १३८९ ज्येष्ठ सुदि ८
भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्ति स्थान-चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर
इस प्रकार स्पष्ट है कि सुमतिसूरि (द्वितीय ) दीर्घजीवी एवं प्रतिभाशीली जैन आचार्य थे। संडेरगच्छ से सम्बन्धित वि. सं. १३७११ एवं १३९२५ के प्रतिमा लेखों में प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम श्रीसूरि दिया गया है। श्रीसूरि कौन थे? क्या ये सुमतिसूरि (द्वितीय) से भिन्न कोई अन्य आचार्य हैं या स्थानाभाव से सूत्रधार ने सुमतिसूरि न लिखकर श्रीसूरि नाम उत्कीर्ण कर दिया ? यह विचारणीय है।
सुमतिसूरि (द्वितीय) के पश्चात उनके पट्टधर शान्तिसूरि (द्वितीय) संडेरगच्छ के नायक बने । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित कोई भी प्रतिमा आज उपलब्ध नहीं है। जैसा कि हम पीछे देख चुके हैं, इनके गुरु सुमतिसूरि (द्वितीय) की अन्तिम ज्ञात तिथि वि. सं. १३८९ है, अतः ये उक्त तिथि के पश्चात ही अपने गुरु के पट्टधर हुए होगें। इसी प्रकार इनके शिष्य ईश्वरसूरि (तृतीय) द्वारा प्रतिष्ठापित सर्वप्रथम अभिलेख वि. सं. १४४७ का है, अतः इनका गच्छ नायकत्व का काल वि. सं. १३८९ से वि. सं. १४१७ के मध्य मान सकते हैं। इनके पट्टधर ईश्वरसूरि (तृतीय) द्वारा प्रतिष्ठापित दो प्रतिमाओं का लेख आज उपलब्ध हैं, जिनका विवरण इस प्रकार
वि. सं. १४१७ ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति-स्थान–चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर वि. सं. १४२५ माघ वदि ७ सोमवार आदिनाथ पंचतीर्थी का लेख प्राप्ति स्थान-शांतिनाथ जिनालय, नमक मंडी, आगरा
१. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ४१५ २. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ३२२ ३. वही, लेखाङ्क ३३३ ४. मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १०९९ ५. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १३३१ ६. वही, लेखाङ्क ४३७ ७. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १४८८
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