Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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सूत्रकृतांग में वणित कुछ ऋषियों की पहचान
सम्राट् रामगुप्त के बारे में हमें जो जानकारी उपलब्ध है, उसमें उसे कहीं भी सिद्धि प्राप्त करने वाला नहीं बताया गया है। रामपुत्त को रामगुप्त मानने की त्रुटि या तो भूलवश या अक्षरों के ज्ञान के अभाव में हो गई प्रतीत होती है।
सूत्रकृतांग में जिस रामपुत्त का वर्णन है, वह सम्राट नहीं वरन् अर्हत् ऋषि रामपुत्त है। रामपुत्त के बारे में हमें जैन एवं बौद्ध दोनों स्रोतों से विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। ऋषिभाषित में जो स्पष्टतः एक प्राचीन ग्रन्थ है, रामपुत्त सम्बन्धी एक अलग अध्याय ही है।' रामपुत्त की जो शिक्षाएँ इसमें वर्णित हैं उससे रामपुत्त अपने समय के एक महान् चिन्तक ऋषि प्रतीत होते हैं । ऋषिभाषित के अतिरिक्त स्थानांग' एवं अनुत्तरोपपातिक भी रामपुत्त का उल्लेख करते हैं। सूत्रकृतांग के अतिरिक्त स्थानांग की सूचना के अनुसार अन्तकृदशा की प्राचीन विषयवस्तु में एक रामपुत्त नामक अध्ययन था जो वर्तमान अन्तकृद्दशा में अनुपलब्ध है। सम्भवतः इस अध्ययन में रामगुप्त के जीवन एवं उपदेशों का संकलन रहा होगा।... सूत्रकृतांग और ऋषिभाषित दोनों से ही यह सिद्ध हो जाता है कि रामपुत्त मूलतः निर्ग्रन्थ परम्परा के नहीं थे, फिर भी उसमें उन्हें सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त था।"
अर्हत् रामपुत्त का वर्णन प्राचीनतम बौद्ध साहित्य में प्राप्त होता है। पालि साहित्य में रामपुत्त का पूरा नाम उद्दक रामपुत्त दिया गया है तथा यह बताया गया है कि रामपुत्त महात्मा बुद्ध से ज्येष्ठ थे । ५ सत्य ज्ञान की खोज में महात्मा बुद्ध जब गृह-त्याग करते हैं तो उनकी भेंट रामपुत्त से होती है। महात्मा बुद्ध रामपुत्त का शिष्य बनकर उनसे ध्यान की प्रक्रिया सीखते हैं। पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् बुद्ध रामपुत्त को अध्यात्म विद्या का सत्पात्र जानकर उन्हें उपदेश देना चाहते हैं परन्तु तब तक रामपुत्त की मृत्यु हो चुकी रहती है।
उपर्युक्त तथ्यों से यह भी स्पष्ट होता है कि रामपुत्त महावीर एवं बुद्ध के समकालीन एक ऐतिहासिक ऋषि थे जो ध्यान पद्धति की अपनी विशिष्ट प्रणाली के लिए प्रसिद्ध थे। दुर्भाग्यवश वैदिक साहित्य से हमें अभी तक रामपुत्त के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है।
बाहुक--सूत्रकृतांग में बाहुक का भी अर्हत् ऋषि के रूप में उल्लेख किया गया है। जैन, बौद्ध एवं वैदिक तीनों स्रोतों से हमें बाहुक के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।
ऋषिभाषित, २३वाँ अध्याय स्थानांग, ७५५ अनुत्तरोपपातिक, ३१६ ऋषिभाषित एक अध्ययन, पृ० ६१-६२ ( लेखक-डॉ० सागरमल जैन,
प्रका०-प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, १९८८ ) Dictionary of Pali Proper Names, Vol. I, PP. 382-83
( Ed. J. P. Malal Sekhar, 1937 )
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