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संडेरगच्छ का इतिहास
१९९ उल्लेख वाला सर्वप्रथम अभिलेखीय साक्ष्य वि. सं. ११८१ का है, जो नाडोल के एक जैन मन्दिर में मूलनायक के परिकर के नीचे उत्कीर्ण है । इसमें यशोभद्रसूरि के संतानीय शालिभद्रसूरि (प्रथम) का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में रूप में उल्लेख है। इसके बाद वि. सं. १२१० पंचतीर्थी के लेख जो जैन मन्दिर, सम्मेदशिखर में आज प्रतिष्ठित है, प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं मिलता। वि. सं. १२१५ के एक लेख में पुनः शालिभद्रसूरि का उल्लेख आता है। अतः वि. सं. १२१० के उक्त पंचतीर्थी प्रतिमा के प्रतिष्ठापक शालिसूरि (प्रथम) ही रहे होगें ऐसा माना जा सकता है।
वि. सं. १२१८, १२२१, १२३३ और १२३६ के लेखों में यद्यपि प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं है, तथापि उनका विवरण इस प्रकार है
वि. सं. १२१८ श्रावण सुदि १४ रविवार ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण लेख
यह ताम्रपत्र पहले जैन मन्दिर 'नाडोल' में था, परन्तु अब रायल एशियाटिक सोसायटी, लन्दन में सुरक्षित है।
वि. सं. १२२१ माघ वदि शुक्रवार सभा मंडप में उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-महावीर जिनालय, सांडेराव वि. सं. १२३३ ज्येष्ठ वदि ७ गुरुवार भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान-जैन मन्दिर, अजारी वि. सं. १२३६ ज्येष्ठ सुदि १३ शनिवार
वि. सं. १२३७, १२५१ एवं १२५२ के प्रतिमा लेखों में प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में यशोभद्रसूरि के सन्तानीय एवं शालिसूरि के पट्टधर सुमतिसूरि (प्रथम) का नाम आता है। इनका विवरण इस प्रकार है
वि. सं. १२३७ फाल्गुनसुदि १२ मंगलवार परिकर के नीचे का लेख
१. विजयधर्मसूरि, संग्राहक एवं सम्पादक-प्राचीन लेख संग्रह, लेखाङ्क ५ २. नाहर, पूरनचन्द, जैन लेख संग्रह, भाग २, लेखाङ्क१६८७; ३. अमीन, जे० पी०-खंभातनुं जैन मूर्ति विधान, पृ० ३२, लेखाङ्क २; ४. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ८३९
मनिविशालविजय-सांडेराव १० १६
मनिजिनविजय-प्राचीन जैन लेख संग्रह, भाग २, लेखाङ्क ३४९ ६. मुनि जयन्तविजय-अर्बुदाचल प्रदक्षिणा जैन लेख संदोह (आबू भाग ५) लेखाङ्क ४१ ७. शाह, अम्बालाल पी०- "जैन तीर्थ सर्व संग्रह" पृ० २१३ ८. विजयधर्मसूरि-पूर्वोक्त, लेखाङ्क २३
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