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प्रमोद कुमार त्रिवेदी ४. पद्मावती (काँस्य, १९ से० मी० x १९.०५ से०मी०)
तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की शासनदेवी पद्मावती कमल दल चक्र के दोहरे आवत्तों द्वारा निर्मित्त पीठ पर ललितासन मुद्रा में आसीन हैं। समकालीन अन्य प्रतिमाओं की भाँति इसके नेत्रों, नासिका तथा अधरों का गढ़न विशेष परिष्कृत नहीं है। वह पद्म-कुण्डल, वलय, स्तनों के मध्य लटकता हार एवं पैरों में सादे पादवलय धारण किये हैं। घुटनों तक लम्बा अधोवस्त्र उदर-बंध द्वारा कसा है । इस चतुर्भुजीय प्रतिमा का दाहिना निचला हाथ वरद मुद्रा में है तथा ऊपरी दाहिना हाथ पाश धारण किये है। निचले बायें हाथ में बीजपूरक तथा ऊपरी बायें हाथ में गदा के सदृश्य अनगढ़ सनाल कमल हैं । उनका सिर तीन सर्प-फणों द्वारा सुरक्षित है। मुख्य प्रतिमा के ऊपरि भाग में पुष्पांकित गद्दी पर तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ ध्यानमग्न कमलासन मुद्रा में आसीन हैं। उनका सिर सप्त फणों द्वारा आच्छादित है। प्रभावली के अतिरिक्त इस परिकर युक्त मूर्ति के दोनों ओर एक-एक गज मुख है, जिसके मुख से आविर्भूत माणिक्य शृङ्खला शीर्ष भाग पर मंगल कलश में समाप्त होती है। (चित्र ४-क) कृति के पृष्ठ भाग पर अंकित तिथियुक्त लेख से ज्ञात होता है कि प्रतिमा की स्थापना ई० १६३६ (संवत् १६९३) में माघ मास के कृष्ण पक्ष के प्रथम दिन सतिनाग की पतिपरायणा पत्नी (नाम अपठनीय) द्वारा की गयी थी। प्रतिष्ठापन समारोह कुन्दकुन्दाचार्य वंश परम्परा के भट्टारक धर्मकीत्ति द्वारा सम्पन्न किया गया, जो कि दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के मूलसंघ के बलात्कार गण से सम्बद्ध सरस्वतीगच्छ के थे । देवनागरी में लेख निम्नांकित है
संवत् १६९३ वर्षे माघ मासे कृष्ण पक्षे प्रतिपदायां श्री मूलसंघे सरस्वती गच्छे बलात्कार (गणे) कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक धर्मकीत्ति गुरुत्प? भट्टारक प्रकीत्ति(तम) सतिनाग पुत्र यो श्री सुखानन्द भार्या "" ... ... ... ."" "" नित्यंप्रणमति । चित्र ४-ख)"
मुस्लिम आक्रमण के पूर्व ९वीं-१३वीं शताब्दी के मध्य इस भूभाग में धातुकर्म एवं धातु शिल्पकला का कार्य अपने चरमोत्कर्ष पर था। इस समय गुजरात के कला शिल्पियों की बेजोड़ उन्नति के कारण ही गुजरात में मध्यकाल में धातुकर्म के अद्वितीय नमूनों का आविर्भाव हुआ। मध्यकाल एवं परवर्ती मध्यकाल में धातुकला कौशल को तकनीक एवं कला के विकास की पृष्ठभूमि हेतु समकालीन धार्मिक चेतना ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। जैन श्रमण विशेष रूप से भव्य कृतियों के निर्माण के प्रेरणा स्रोत थे। जैन समुदाय द्वारा सदैव ही प्राचीन कला-परम्परा को निरन्तर संरक्षण मिला है। इस समुदाय ने मन्दिर निर्माण, मूर्ति शिल्प के विकास एवं पाण्डुलिपियों के १. स्वर्ण कमल, ऐन्शियेण्ट आर्ट एण्ड टेक्नालॉजी ऑफ गुजरात, म्यूजियम ऐण्ड पिक्चर गैलरी,
बड़ौदा, गुजरात स्टेट, १९८०. आभारोक्ति-प्रस्तुत लेख के छाया चित्र श्री हैनरी माइकेल द्वारा तैयार किये गये हैं। इनका प्रतिलिप्याधि
कार भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा सुरक्षित है । चित्र सूची
१ (क-ख) चतुर्विंशतिपट्ट २ (क-ख) पार्श्वनाथ की पंचतीथिका प्रतिमा ३ (क-ख) शान्तिनाथ की पंचतीथिका प्रतिमा ४ (क-ख) पद्मावती यक्षी
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