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गुजरात से प्राप्त कुछ महत्त्वपूर्ण जैन प्रतिमायें २. पार्श्वनाथ को पंचतीथिका प्रतिमा (कांस्य, १०.०५ से० मी० ४९ से० मी०)
श्वेताम्बर पंथ की इस कलाकृति में तीर्थकर पार्श्वनाथ ध्यान मुद्रा में पद्मासन लगाये एक सादी गद्दी पर आसीन हैं। उनके कान लम्बे तथा अधरों का गढ़ाव कुछ मोटाई लिये है। इस 'सफण मूर्ति' में मूलनायक का सिर सप्त सर्पफणों द्वारा आच्छादित है। उनके दोनों पाश्वों में चार अन्य जिन अंकित हैं, जिनमें से दो कायोत्सर्ग मुद्रा में तथा उपरिभाग में शेष दो तीर्थंकर कमलासन में बैठे हैं। इन चार तीर्थंकरों की शिरोभूषा मूल-नायक के सदृश्य है। पीठ दो उर्ध्व भित्तिस्तम्भों पर आश्रित क्षैतिज दण्ड युग्मों द्वारा निर्मित है। पृष्ठांकित आलेख के अनुसार यह पंचतीथिका प्रतिमा ई० १४४६ (वि० सं० १५०३) में प्रतिष्ठापित की गयी थी, तथापि उत्कीर्ण पीठ के ऊपरी भाग भग्न होने के कारण लेख की पूर्णरूपेण जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है। (चित्र २–क, ख)
३- शान्तिनाथ की पंचतीथिका प्रतिमा (कॉस्य, १७.०२ से० मी०४ ११.०५ से० मी०)
धातु-प्रतिमा की पीठिका के सम्मुख भाग में ॐ नमः एवं पाद चिह्न अंकित हैं । शान्तिनाथ जी ध्यानमग्न पद्मासन मुद्रा में एक सिंहासन पर आसन्न हैं। सिर के पीछे प्रभावली तथा ऊपर कलशयुक्त छत्र है जिसके पार्श्व में अभिषेक गजों का निरूपण हुआ है। मूल-नायक का सिर उष्णीश युक्त है तथा उनके नेत्र समचतुर्भजीय आकार में प्रदर्शित हैं। मूल-नायक के पार्श्व में चार अन्य तीर्थंकरों का अंकन है। अधोभाग में कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े जिनों के साथ एक चँवरधारी सेवक भी त्रिभंग-मुद्रा में खड़ा है। परिकर पर अंकित पद्मबन्ध का बाह्य भाग गजमुखों से आविर्भूत मौक्तिक शृङ्खला द्वारा सुसज्जित है। कलाकृति के शीर्षस्थ भाग पर मंगल कलश के साथ मयूरयुग्म प्रदर्शित है। सिंहासन पर वामाभिमुख सिंहयुग्म बारीकी से गढ़ा गया है। सिंहासन के बायीं ओर सोलहवें तीर्थंकर के यक्ष गरुड़ एवं दाहिनी ओर यक्षी निर्वाणी का मूर्तन किया गया है। उच्च अलंकृत पीठिका पर नमस्कार मुद्रा में एक उपासक तथा मध्य में धर्मचक्र के दोनों ओर एक मृग है। चक्र के दोनों ओर नौ बिन्दुआकार, मोटी एवं लघु आकृतियाँ (पाँच बांयी ओर तथा चार दाहिनी ओर) स्पष्टतया नवग्रहों को प्रतीक हैं। (चित्र ३--क)
इस कलाकृति की तिथि ई० १४६८ है। प्रतिमा के पृष्ठभाग पर देवनागरी लिपि में उत्कीर्ण लेख इस प्रकार है
सं० (संवत्) १५२५ वै० (वैशाख) सु० श्रु० ३ गुरौ श्री मूलसंधे सरस्वतीगच्छे भ० (भट्टारक) श्री सकलकीर्तित्त्प? भ० (भट्टारक) श्री विमलेन्द्रकीतिभिः श्री शान्तिनाथ बिम्बं प्रतिष्ठित हूँबड़ ज्ञातीय म० (महम महत्तर) करमसी (ह) भा० (भार्या) करमादे (वी) सु० (सुता) जइनालदे(वी) स० रांका । (चित्र ३-ख)
__ आलेख से विदित होता है कि उक्त जैन प्रतिमा की प्रतिष्ठापना यशस्वी व्यक्ति करमसी (करमसिंह), पत्नी करमदेवी एवं पुत्री जइनदेवी द्वारा ई० १४६८ (सम्वत् १५२५), वैशाख सुदि ३ गुरुवार के दिन की गयी थी। प्रतिष्ठापन समारोह, दिगम्बर सम्प्रदाय (हूँबड़ जाति दिगम्बर मतावलम्बियों में होती है) के मूल संघ के सरस्वतीगच्छीय भट्टारक सकलकोत्ति के उत्तराधिकारी विमलेन्द्रकीत्ति द्वारा किया गया था ।
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