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चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर का तीन जैन प्रतिमा-लेख - १७३ लेख संख्या ३:
संवत् १५०१ वर्ष का यह लेख पंचतीर्थ प्रतिमा की पीठिका के तीन हिस्सों पर खुदा है। बायें भाग में केवल तीन पंक्तियां खुदी हैं जबकि मध्यभाग में पाँच और दाहिने भाग में छः पंक्तियां हैं। मध्य दाहिने भाग की पंक्तियों के शुरू के कुछ अक्षर मिट जाने से अभिलेख का पूरा खुलासा संभव नहीं हो पाया है। इस अभिलेख में हेमतिलक सूरि, वीरचन्द्र सूरि, जयाणंद सूरि और प्रतिष्ठाकर्ता मुनितिलक सूरि के नाम अंकित हैं। एक ब्रह्माणगच्छीय हेमतिलक सूरि का नाम संवत् १४३७ (ईस्वी १३८०)' और संवत् १४४६ (ईस्वी १३८९)२ के अभिलेखों से ज्ञात है। संभव है कि १४४४ ईस्वी की इस पंचतीर्थ प्रतिमा-लेख के हेमतिलक सूरि और ब्रह्मणागच्छीय हेमतिलक सूरि एक रहे हों। ऐसा स्वीकार करने पर ब्रह्माणगच्छ के तीन पश्चात् कालीन मुनियों के नाम इस अभिलेख से प्रकाश में आते हैं। यह प्रतिमा मूलतः ने(न)डूलाइ(नाडलाई, राजस्थान) के किसी पार्श्वनाथ जिनालय में रही होगी।
मूल पाठ १. संवत् १५०१ वर्षे श्रीपार्श्वनाथः [प्रतिमा स्थापितः २. ने(?)ने(न)डूलाइ प्रासाद] + + न परिन + + + श्रावके ३. छे श्री हेमतिलक सूरितः । तत् पट्टे श्री वीरचन्द्र सू[रि] + +देम त० ४. श्री जयाणंद सूरि प्रतिष्ठित गछनायक
[श्री] मुनित्तिलक सूरि श्रा० ... ... ...
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प्रवक्ता प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग
जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर-मध्यप्रदेश
१. पूरनचन्द नाहर, जैन इन्सक्रिप्शन्स, भाग २, लेखांक ११२३ । २. वही, भाग १, लेखांक ९६८।
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