Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________
जैनतंत्र साधना में सरस्वती
૦૨
नवीं शती ई० के उत्तरार्द्ध में सिद्धायिका या सिद्धायिनी नाम से सरस्वती तीर्थंकर महावीर की यक्षी के रूप में भी निरूपित हुई । " सम्पूर्ण आगमिक साहित्य मूलतः महावीर की वाणी है । इसी कारण श्रुत देवता के रूप में आगमिक ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती को उनकी यक्षी भी बनाया गया । सरस्वती के समान ही श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं में यक्षी सिद्धाfar को भी पुस्तक और वीणा के साथ निरूपित किया गया है। महावीर का वाहन सिंह है, सम्भवतः इसी कारण सिद्धायिका यक्षी का वाहन भी सिंह हुआ। पर एक कन्नड़ी ध्यान श्लोक में सिद्धायिका का वाहन हंस भी बताया गया है।
१.
२.
३.
कला - इतिहास विभाग, काशी हिन्दूविश्वविद्यालय, वाराणसी - ५
द्रष्टव्य, यू० पी० शाह, ' यक्षिणी ऑव दि ट्वेण्टो-फोर्थं जिन महावीर', जर्नल ओरियण्टल इन्स्टिट्यूट, बड़ौदा, खण्ड २२, अ० १-२ सितम्बर १९७२, पृ० ७०-७५; मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी, एलिमेण्ट्स ऑव जैन आइकनोगफी, वाराणसी, १९८३, पृ० ५८-६४. त्रिटिशलाकापुरुषचरित (हेमचन्द्रकृत ) १०.५.१२-१३; निर्वाणकलिका १८.२४; मंत्राधिराजकल्प (सागरचन्द्रसूरिकृत) ३.६६; आधारदिनकर प्रतिष्ठाधिकार ३४.१; प्रतिष्ठासारसंगह ५.७३-७४.
यू० पी० शाह, पूर्व निर्दिष्ट, पृ० ७५.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org