Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________
अङ्ग आगमों के विषयवस्तु-सम्बन्धी उल्लेखों का तुलनात्मक विवेचन
(घ) तुलनात्मक विवरण
दिगम्बर उल्लेखों से ज्ञात होता है कि यह ग्रन्थ भी अन्तकृत-दशा की तरह २४ तीर्थंकरों के तीर्थ में होने वाले १०-१० अनुत्तरोपपादिकों का वर्णन करता है । भगवान् महावीर के काल के जिन १० अनुत्तरोपपादिकों के नामों का उल्लेख दिगम्बर ग्रन्थों में मिलता है उनमें से ५ नाम स्थानाङ्ग में शब्दशः मिलते हैं। स्थानाङ्ग और समवायाङ्ग में इसके १० अध्ययनों का उल्लेख है। स्थानाङ्ग में नाम गिनाए हैं और समवायाङ्ग में नहीं। इसके अतिरिक्त समवायाङ्ग में तीन वर्गों का भी उल्लेख है परन्तु उद्देशन और समुद्देशन काल १० ही बतलाया है जो चिन्त्य है । नन्दी में अध्ययनों का उल्लेख ही नहीं है उसमें तीन वर्ग और तीन उद्देशन कालादि का ही कथन है। विधिमार्गप्रपा में तीन वर्गों के साथ उसके ३३ अध्ययनों का भी निर्देश है जिनका वर्तमान आगम के साथ साम्य है। वर्तमान ग्रन्थ में केवल ३ नाम ऐसे हैं जो स्थानाङ्ग और दिग० ग्रन्थों में एक साथ उक्त हैं। पद संख्या, समवायाङ्ग, नन्दी और दिग० ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न है। ज्ञाताधर्मकथा की तरह इसमें उपोद्घात भी है। इन सब कारणों से यह परवर्ती रचना सिद्ध होती है ।
१०-प्रश्नव्याकरण (क) श्वेताम्बर ग्रन्थों में
१. स्थानाङ्ग में'-इसमें १० अध्ययन हैं-उपमा, संख्या, ऋषिभाषित, आचार्यभाषित, महावीरभाषित, क्षौमिकप्रश्न, कोमलप्रश्न, आदर्शप्रश्न, अंगुष्ठप्रश्न और बाहुप्रश्न ।
२. समवायाङ्ग में-इसमें १०८ प्रश्न, १०८ अप्रश्न, १०८ प्रश्नाप्रश्न, विद्यातिशय तथा नाग-सुपर्णों के साथ दिव्यसंवाद हैं। स्वसमय-परसमय के प्रज्ञापक प्रत्येक बुद्धों के विविध अर्थों वाली भाषाओं के द्वारा कथित वचनों का, आचार्यभाषितों का, वीरमहर्षियों के सुभाषितों का, आदर्श (दर्पण), अंगुष्ठ, बाहु, असि, मणि, क्षौम (वस्त्र) और आदित्य (सूर्य)-भाषितों का, अबुधजनों को प्रबोधित करने वाले प्रत्यक्ष प्रतीतिकारक प्रश्नों के विविध गुण और महान् अर्थवाले जिनवरप्रणीत उत्तरों का इसमें वर्णन है। ___अङ्गों के क्रम में यह १०वाँ अङ्ग है । इसमें १ श्रुतस्कन्ध, ४५ उद्देशनकाल, ४५ समुद्देशनकाल और संख्यात लाख पद हैं ।
शेष वाचनादि का कथन आचाराङ्गवत् है ।
३. नन्दीसूत्र में- इसमें १०८ प्रश्न, १०८ अप्रश्न, १०८ प्रश्नाप्रश्न हैं। जैसे-अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न, आदर्शप्रश्न, अन्य विचित्र विद्यातिशय तथा नाग-सुपर्णों के साथ दिव्य संवाद ।
श्रुतस्कन्ध-संख्या आदि का कथन समवायाङ्गवत् ही बतलाया है परन्तु यहाँ ४५ अध्ययन और संख्यात् सहस्रपदसंख्या बतलाई है।
१. स्थानाङ्गसूत्र १०.११६ । २. समवा० सूत्र ५४६-५४९ । ३. नन्दीसूत्र ५५ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org