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बृहद्गच्छ का संक्षिप्त इतिहास सूरि से पूर्णिमा पक्ष का आविर्भाव हुआ।' इसी प्रकार आचार्य वादिदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि ने वि० सं० ११७४/ई० सन् १११७ में नागौर में तप करने से "नागौरी तपा" विरुद् प्राप्त किया और उनके शिष्य "नागोरीतपगच्छीय" कहलाने लगे। इसी प्रकार इस गच्छ के अन्य शाखाओं का भी उल्लेख प्राप्त होता है।
श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय से सम्बद्ध प्रकाशित जैन लेख संग्रहों में वडगच्छ से सम्बन्धित अनेक लेख संग्रहीत हैं। इन अभिलेखों में वडगच्छीय आचार्यों द्वारा जिन प्रतिमा प्रतिष्य जिनाल की स्थापना आदि का उल्लेख है। ये लेख १२वीं शताब्दी से लेकर १७वीं-१८वीं शताब्दी तक के हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि वडगच्छीय आचार्य साहित्य सृजन के साथ-साथ जिनप्रतिमा प्रतिष्ठा एवं जिनालयों की स्थापना में समान रूप से रुचि रखते रहे । वर्तमान काल में इस गच्छ का अस्तित्व नहीं है।
(क्रमशः पृ० ११४ पर तालिका है )
शोध सहायक पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान
वाराणसी
१. नाहटा, अगरचन्द-"जैन श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश" श्रीयतीन्द्रसूरि अभिनन्दन अन्य
पृ० १५३। २. वही पृ० १५१ । ३. वही पृ० १५४ ।
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