Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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नाट्यदर्पण पर अभिनवभारती का प्रभाव
११९ आचार्य रामचन्द्र-गुणचन्द्र ने नाट्यदर्पण में अन्य आचार्यों के मतों को विपूल सङ्ख्या में प्रदर्शित किया है। अभिनवभारतो में भी इसी रूप में विविध विचारधाराओं का उल्लेख प्राप्त होता है। नाट्यदर्पण में प्रदर्शित अनेक मत ऐसे हैं जो अभिनवभारती में भी प्राप्त होते हैं। वस्तुतः रामचन्द्र-गुणचन्द्र ने अपने ग्रन्थ में प्रदर्शित विभिन्न मत-मतान्तरों का पर्याप्त अंश अभिनवभारती से प्राप्त किया है। इनमें से कुछ मत अभिनवभारती के पाठ-भेद के रूप में भी प्राप्त होते हैं। नाट्यदर्पण में उल्लिखित ऐसे मतों का जो अभिनवभारती में भी निर्दिष्ट हैं-हम यहाँ उल्लेख कर
नाट्यदर्पण
अभिनवभारती १. केचित् तु मुखादयः सन्धयोऽवस्थाश्च यत्र अत्र केचिमून् सर्वान् सन्धीनवस्थापञ्चकनिर्वहणे
पृथक्-पृथक् सङ्कपतः पुनरुल्लिङ्ग्यन्ते, तं पृथग्वृत्त्या योज्यमानानिच्छन्ति । ना० शा०
निर्वहणसन्धिमाहुः । विवृत्ति पृ० ५१ भाग-३ पृ० २९ । २. अन्ये तु विपदां शमनं करणमाहुः । पूर्वोक्त अन्ये तु विपदां शमनं करणमाहुः। पूर्वोक्त पृ० पृ० ५६
४१ । ३. अन्ये तु वर्णानां ब्राह्मणादीनां यथासम्भवं यत्तु ब्राह्मणादिवर्णचतुष्टयमेलनमिति तदफलत्वा____ द्वयोस्त्रयाणां चतुर्णां वैकत्र मीलनं वर्णसंहार- दनादृत्यमेव । पूर्वोक्त पृ० ४७ ।
माचक्षते । पूर्वोक्त पृ० ६५ ४. अन्ये तु 'चित्रार्थ रूपकं वचः' इति पठन्ति । अन्ये तु चित्रार्थमेव वचो रूपकमिति मन्यन्ते । पूर्वोक्त पृ० ७४
पूर्वोक्त पृ० ४८। ५. अन्ये त्वस्य स्थाने युक्ति पठन्ति । पूर्वोक्त पृ. ९० युक्तिरित्यन्ये इदमङ्गं व्यवहरन्ति । पूर्वोक्त पृ० ५६ ६. केचिदन्यतमाङ्गानङ्गीकारेण द्वादशाङ्गमेवैतं केचिदत्रान्यतममङ्गं नाधीयते, द्वादशाङ्गमेवैतत्स
सन्धिमिच्छन्ति, एवं गर्भसन्धिमपीति । पूर्वोक्त धिमाहः । पूर्वोक्त पृ० ५६ ।
पृ० ९१ ७. अन्ये तु-'स्वभाव शुद्ध-पाखण्ड्यादेश्वरितं अन्ये त्वाहुः येषां स्वभावत एव चरितं शिष्टमध्ये
प्रहस्यते, तत् सङ्कीर्णचरितविषयत्वात् सङ्की- सभ्येतरतमत्वेन प्रहसानहंतदविशुद्धत्वात् सङ्कीर्णम्,
र्णम्' इत्याहुः । पूर्वोक्त पृ० ११३ तद्योगाच्च रूपकम् । पूर्वोक्त भाग-२ पृ० ४४८ । ८. सङ्कीर्णमनेकाक़ केचिदनुस्मरन्ति । पूर्वोक्त प्रहसनस्याङ्कनियमानभिधानात् . शुद्धमेकाङ्क पृ० ११३
सङ्कीर्णं त्वनेकाझं वेश्यादिचरितसङ्ख्याबलादिति
केचित् । पूर्वोक्त पृ० ४४९ । । रामचन्द्र-गुणचन्द्र की शैली की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि उन्होंने विषयों को परिभाषित कर उनके स्पष्टीकरण के लिये एक अथवा अधिक उदाहरण तत्सम्बद्ध विविध ग्रन्थों से प्रस्तुत किये हैं। निश्चितरूपेण शुष्क शास्त्रीय नियमों के व्यावहारिक प्रदर्शन से विषय-बोधन में पर्याप्त सहायता प्राप्त होती है। यहाँ भी उन्होंने अभिनवभारती की सामग्री का लाभ उठाया है, क्योंकि आचार्य अभिनवगुप्त द्वारा प्रदर्शित उदाहरणों को उन्होंने तत्-तत् प्रसङ्गों में अनेकशः स्वीकार कर नाट्यदर्पण में अनेक स्थलों पर प्रदर्शित किया है। अभिनवभारती पर आधारित नाट्यदर्पण के निम्न उदाहरणों को प्रस्तुत किया जा सकता है
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