Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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डा० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी एवं दा० कमकगिरि महत्त्वपूर्ण है।' बहुरूपा विद्या की सिद्धि में रावण ने भूमि पर योगस्थ रूप में सहस्रदल पद्मों के साथ साधना की थी। एक स्थल पर राम का कूमारों और हनुमान की प्रव्रज्या पर टिप्पणी करते हुए यह कहना कि प्रयोगमती कशल विद्या के न होने के कारण ही वे तप और संयम को ओर अभिमुख हुए हैं, विद्याओं के महत्त्व को प्रकट करता है।' युद्ध में विजय प्राप्ति के उद्देश्य से राम और लक्ष्मण ने महालोचन देव का स्मरण किया था जिसने तुष्ट होकर राम को सिंहवाहिनी विद्या और लक्ष्मण को गरुडा विद्या दी। एक स्थान पर रावण द्वारा विविध रूपधारी हजारों विद्याओं की सिद्धि का भी उल्लेख हुआ है। इस ग्रंथ में रावण द्वारा सिद्ध अनेक विद्याओं में से एक स्थल पर ५५ विद्याओं की सूची भी दी गई है। इस सूची में आकाशगामिनी, कामदायिनी, कामगामी, दुर्निवारा, जयकर्मा, प्रज्ञप्ति, भानुमालिनी, अणिमा, लघिमा, मनःस्तम्भनी, अक्षोभ्या, संवाहिनी, सुरध्वंसी, कौमारी, वधकारिणी, सुविधाना, तमोरूपा, विपूलाकारी, दहनी, शुभदायिनी, रजोरूपा, दिन-रजनीकरी, वजोदरी, समादिष्टी, अजरामरा, विसंज्ञा, जलस्तम्भनी, अग्निस्तम्भनी, गिरिदारिणी, अवलोकनी, अरविध्वंसिनी, घोरा, वीरा, भुजंगिनी, वारुणी, भुवना, दारुणी, मदनाशनी, रवितेजा, भयजननी, ऐशानी, जया, विजया, बन्धनी, वाराही, कुटिला, कीर्ति, वायूद्भवा, शान्ति, कौवेरो, शंकरी, योगेश्वरी, बलमथनी, चाण्डाली, वर्षिणी विद्याओं के नाम हैं। इसी प्रकार भानुकर्ण ने सर्वरोहिणी, रतिवृद्धि, आकाशगामिनी, जम्भिणी तथा निद्राणी नाम वाली पाँच और विभीषण ने सिद्धार्था, अरिदमनी, निर्व्याघाता एवं आकाशगामिनी इन चार विद्याओं की सिद्धि प्राप्त की थी।
पउमचरिय में ही अन्यत्र रत्नश्रवा द्वारा सिद्ध मानससुन्दरी महाविद्या तथा रावण एवं उनके भ्राताओं द्वारा सिद्ध सर्वकामा नाम वाली अष्टाक्षरा विद्या के भी उल्लेख हैं। इन महाविद्याओं के स्वरूप एवं उनकी सिद्धि से प्राप्त होने वाली दिव्य शक्तियां तथा इनकी उपासना पद्धति के आधार पर इनका तांत्रिक देवियाँ होना निर्विवाद है। सर्वकामा नाम की अष्टाक्षरा विद्या की सिद्धि एक लाख जाप से हुई थी जिसके मंत्रों का परिवार दस करोड़ हजार बताया गया है।'
१. पउमचरिय ६७.४ २. पउमचरिय ६८.२३, २७ ३. अहवा ताण न विज्जा, अत्थि सहीणा, पओगमइकुसला।
जेणुज्झिऊण भोगा, ठिया य तव-संजमाभिमुहा ।।--पउमचरिय १०९.३ ४. पउमस्स देइ तुट्ठो, नामेणं सोहवाहिणी विज्ज ।
गरुडा परियणसहिया, पणामिया लिच्छनिलयस्स ॥-पउमचरिय ५९.८४ ५. पउमचरिय ७.१३० ६. पउमचरिथ ७.१३५-४२ ७. पउमचरिय ७.१४४-४५ ८. पङमचरिय ०.०३,१०० ९. जविऊण समाढसा, विज्जा वि हु सोलसक्खरनिबद्धा ।
दहकोडिसहस्साइं, जोसे मन्ताण परिवारो॥-पउमचरिय ७.१०८
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