Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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अनुपम जैन एवं सुरेशचन्द्र अग्रवाल इस निष्कर्ष के संदर्भ में यह कहना अनुपयुक्त न होगा कि डा० अग्रवाल ने एक ओर तो लिखा है कि “गणितसारसंग्रह के अतिरिक्त ट्त्रिंशिका नामक पुस्तक का उल्लेख राजस्थान के जैन शास्त्रों के भण्डारों की ग्रन्थ सूची में मिलता है, वहीं उसी पैरा में आगे लिखते हैं कि "महावीराचार्य ने इसमें बीजगणित की ही चर्चा की है" स्पष्ट है कि डा० अग्रवाल ने प्रति नहीं देखी थो । कासलीवाल जी को ( वे गणित विद्वान नहीं हैं)पष्पिकाओं से बार-बार "महावीराचार्यस्यकृतो....|" आदि आने के कारण महावीराचार्य की कृति होने की भ्रांति हो गयी तो अग्रवाल ने गणितसारसंग्रह में अंकगणित एवं क्षेत्रगणित के विषय होने एवं उनकी एक अन्य कृति ज्योतिषपटल का उल्लेख मिलने के कारण शेष बचे ( उस काल की परम्परा के अनुरूप ) विषय को इसमें निहित मान लिया।
भारतीय गणित के स्वर्ण युग के गणितज्ञों में माधव चन्द्र विद्य का नाम इस कृति के प्रकाश में आने से अभिन्न रूप से जुड़ गया है । आशा है कि इस कृति का अनुवाद एवं तुलनात्मक अध्ययन मध्यकालीन गणित की प्रकृति को समझने के साथ ही महावीराचार्य के गणित को समझने में भी सहायक होगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ एवं लेख 1. Agrawa, M. B. Lal- I महावीराचार्य की जैन गणित को देन,
जैन सिद्धान्त भास्कर, (आरा, २४, १९६४, पृ० ४२-४७ II गणित एवं ज्योतिष के विकास में जैनाचार्यों का योगदान,
शोधप्रबन्ध, आगरा वि० वि०, १९७२, पृ० ३७७ 2. Gupta, R. C. - Mahāvīrācārya on the perimeter & Area
of Ellipse,
M. E. (Shiwan) I (B), 1974, pp. 17-20 3. Jain, Anupam - I कतिपय अज्ञात जैन गणित ग्रन्थ,
गणित भारती (दिल्ली), ४ (१,२) १९८२, पृ० ६१-७१ II महावीराचार्य,
दि० जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर, १९८४ III Mahāvīrācārya, The men & the mathemati
cian,
due for Publication Acta Ciencia Indica 4. Jain, J. P. -
राष्ट्रकूट युग का जैन साहित्य सम्वर्द्धन में योगदान, सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाश चन्द्र अभि० ग्रन्थ, रीवा, १९८०
पृ० २७३-२८० 5. Jain, L.C. -
महावीराचार्य कृत गणित सार संग्रह, प्रस्तावना परिशिष्ट एवं टिप्पण सहित सम्पादित, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, १९६३
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