Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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नि-परक सामग्री
विमलसूरिकृत पउमचरिय में प्रतिमाविज्ञान-परक सामग्री
१५१ नारायण, चक्रधर तथा चक्रपाणि नामों या विशेषणों से भी अभिहित किया गया है।' एक स्थान पर विमलसूरि ने तीर्थंकरों के मध्य के कालान्तर से भारत (महाभारत) और रामायण के बीच ६ लाख से अधिक वर्षों के अन्तर का संकेत किया है ।२ (यह अंक निश्चित रूप से अत्यन्त अतिशयोक्तिपूर्ण है ।)
पउमचरिय की ६३ महापुरुषों ( शलाकापुरुषों) की सूची में वर्तमान अवसर्पिणी काल के २४ जिनों के अतिरिक्त १२ चक्रवर्ती ( भरत, सगर, मघवा, सनत्कुमार, शान्ति, कुन्थु, अर, सुभूम, पद्म, हरिषेण, जयसेन, ब्रह्मदत्त ), ९ बलदेव (अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनन्द, नन्दन, पद्म या राम, बलराम ), ९ वासुदेव (त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवर, पुण्डरीक, दत्त, नारायण या लक्ष्मण, कृष्ण) और ९ प्रतिवासुदेव ( अश्वग्रीव, तारक, मैरक, निशुम्भ, मधुकैटभ, बलि, प्रह्लाद, रावण, जरासंध ) के भी नामोल्लेख हैं। ग्रन्थ में आगे के उत्सर्पिणी काल में भी इतने ही महापुरुषों के होने का उल्लेख है। इस प्रकार जैन देवमण्डल की प्रारम्भिक अवधारणा की दृष्टि से पउमचरिय की ६३ महापुरुषों की सूची का विशेष महत्त्व है।
पउमचरिय में ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ एवं कुछ विद्याओं के अतिरिक्त अन्य किसी जैन देवता के लक्षणों की चर्चा नहीं है। ग्रन्थ के रचनाकाल ( ४७३ ई० ) तक कला में भी केवल ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ तीर्थंकरों के ही लक्षण मिलते हैं। तीर्थकर मूर्तियों में यक्ष-यक्षी युगलों का अंकन ६ठी शती ई० में और यक्षों तथा विद्याओं का स्वतन्त्र निरूपण ल० आठवीं शती ई० में प्रारम्भ
हुआ।
जैन संप्रदाय में आराध्य देवों के अन्तर्गत जिनों का सर्वाधिक महत्त्व है। इन्हें देवाधिदेव भी कहा गया है। रामकथा से सम्बन्धित ग्रन्थ होने के बावजूद पउमचरिय में संभवतः इसी कारण तीर्थंकरों से सम्बन्धित अनेक सन्दर्भ हैं ।। २४ तीर्थंकरों की वन्दना के प्रसंग में ग्रन्थ के प्रारम्भ में ऋषभनाथ को जिनवरों में वृषभ के समान श्रेष्ठ तथा सिद्ध, देव, किन्नर, नाग, असुरपति एवं भवनेन्द्रों
१. अवहिविसएण नाउं, हलधर-नारायणा तुरियवेगा।
-पउमचरिय ३५.२२; ३९.२०, ३१,१२६; ७०.३३, ३६; ७२.२२; ७३.३,५, १९; ७६.३६, ७७.१; ७८.३२; ८०.२ २. छस्समंहिया उ लक्खा, वीरसाणं अन्तरं समवखायं । तित्थयरेहि महायस!, भारह-रामायणाणं तु ।।
-पउमचरिय १०५.१६ ३. ज्ञातव्य है कि पउमचरिय में ६३ महापुरुषों की सूची में ९ बलदेव और ९ वासुदेव के नामोल्लेख
के क्रम में राम और लक्ष्मण का उल्लेख बलराम और कृष्ण के पूर्व ही हुआ है । (५.१५४-५५) साथ ही जैन परम्परा के अनुरूप राम २०वें तीर्थकर मुनिसुव्रत और कृष्ण २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ के समकालीन बताए गए हैं।
पउमचरिय ५.१४५-५६ ५. पउमचरिय ५.१५७ ६. ग्रन्थ में जिन और तीर्थकर के साथ ही अर्हत् शब्दों का भी प्रयोग हुआ है । पउमचरिय १.१५.१२२
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