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अङ्ग आगमों के विषयवस्तु-सम्बन्धी उल्लेखों का तुलनात्मक विवेचन . श्रुतज्ञानी, वादी, अनुत्तरविमानों में उत्पन्न होने वाले साध, सिद्ध, पादपोपगत, जो जहाँ जितने भक्तों का छेदनकर उत्तम मुनिवर अन्तकृत हुए, तमोरज से विप्रमुक्त हुए, अनुत्तरसिद्धिपथ को प्राप्त हुए, इन महापुरुषों का तथा इसी प्रकार के अन्य भाव मूल-प्रथमानुयोग में कहे गए हैं। (ख) गंडिकानुयोग-यह अनेक प्रकार का है। जैसे-कुलकरगंडिका, तीर्थंकरगंडिका, गणधरगंडिका, चक्रवर्तीगंडिका, दशारगंडिका, बलदेवगंडिका, वासुदेवगंडिका, हरिवंशगंडिका, भद्रबाहुगंडिका, तपःकर्मगंडिका, चित्रान्तरगंडिका, उत्सर्पिणीगंडिका, अवसपिणीगंडिका, देवमनुष्यतिर्यञ्च और नरक गति में गमन, विविध योनियों में परिवर्तनानुयोग इत्यादि गंडिकाएँ इस गंडिकानुयोग में कही जाती हैं।
(उ) चूलिका-आदि के चार पूर्वो की ही (पूर्वोक्त) चूलिकायें हैं, शेष पूणे की नहीं, यही चूलिका है।
अङ्गों के क्रम में यह १२वाँ अङ्ग है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध, चौदह पूर्व, संख्यात वस्तु, संख्यात चूलावस्तु, संख्यात प्रामृत, प्राभृत-प्राभूत, प्राभृतिक, प्राभूत-प्राभतिक हैं। पद संख्या संख्यात लाख है। शेष वचनादि का कथन आचाराङ्गवत् है।
३. नन्दीसूत्र में'-दृष्टिवाद में सर्वभावप्ररूपणा है। नन्दी में प्रायः समवायाङ्ग की तरह ही दृष्टिवाद की समग्र विषयवस्तु बतलाई गई है। कहीं-कहीं क्रम और नाम में यत्किचित् परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है। यहाँ पृष्टश्रेणिका आदि परिकर्मों के भेद गिनाए हैं जबकि समवायाङ्ग में नहीं हैं। जैसे-तृतीय पृष्टश्रेणिका परिकर्म-इसके ११ भेद हैं-पृथगाकाशपद, केतुभूत, राशिबद्ध, एकगुण, द्विगुण, त्रिगुण, केतुभूत, प्रतिग्रह, संसार-प्रतिग्रह, नन्दावर्त और पृष्टावत । यहाँ केतुभूत दो बार आया है। चतुर्थ अवगाढ़श्रेणिका (अवगाहनश्रेणिका) परिकर्म-पृथगाकाशपदादि दश तथा ओगाढावत्त । पंचम से सप्तम परिकर्म के प्रथम १० भेद पूर्ववत् होंगे तथा अंतिम स्वनामयक्त होगा। जैसे क्रमशः-उपसंपादनावर्त, विप्रजहदावर्त, च्युताऽच्युतावर्त। इस तरह समवायाङ्ग के भेदों से कुछ अन्तर है । दृष्टिवाद की पदसंख्या यहाँ संख्यात सहस्र बतलाई है।
४. विधिमार्गप्रपा में-दृष्टिवाद को उच्छिन्न बतलाकर यहाँ कुछ भी कथन नहीं किया है । (ख) दिगम्बर ग्रन्थों में
१. तत्त्वार्थवात्तिक में-दृष्टिवाद में ३६३ जेनेतर दृष्टियों (कुवादियों) का निरूपण करके जैनदष्टि से उनका खण्डन किया गया है । कौत्कल, काणेविद्धि, कौशिक, हरिस्मश्रु, मांछपिक, रोमश, हारीत, मुण्ड, आश्वलायन आदि क्रियावादियों के १८० भेद हैं । मरीचिकुमार, कपिल, उलूक, गार्ग्य, व्याघ्रभूति, वाद्वलि, माठर, मौद्गलायन आदि अक्रियावादियों के ८४ भेद हैं। साकल्य, वाल्कल, कुथुमि, सात्यमुग्र, नारायण, कठ, माध्यन्दिन, मौद, पैप्पलाद, बादरायण, अम्बष्ठि, कृदौविकायन, वसु, जैमिनि आदि अज्ञानवादियों के ६७ भेद हैं । वशिष्ठ, पराशर, जतुकणि, वाल्मीकि, रौमहर्षिणि, सत्यदत्त, व्यास, एलापुत्र, औपमन्यव, इन्द्रदत्त, अयस्थुण आदि वैनयिकों के ३२ भेद हैं। कुल मिलाकर ३६३ मतवाद हैं। १. नन्दी सुत्र ५७ । २. विधिमार्गप्रपा पृ० ५६ । ३. तत्त्वार्थ० १.२०, पृ० ७४ ।
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