Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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अङ्ग आगमों के विषयवस्तु सम्बन्धी उल्लेखों का तुलनात्मक विवेचन
नाङ्गो १० अध्ययनों का पूर्ण साम्य नहीं है । समवायाङ्ग के ५५वें समवाय में कहा है- "भगवान् महावीर अन्तिम रात्रि में पुण्यफल - विपाक वाले ५५ और पापफल विपाकवाले ५५ अध्ययनों का प्रतिपादन करके सिद्ध, बुद्ध मुक्त हो गए ।" इस कथन से प्रकृत ग्रन्थ-योजना संगत नहीं बैठती है । उपोद्घात भी इसकी परवर्तिता का सूचक है |
१२ - दृष्टिवाद
श्वेताम्बर ग्रन्थों में
१. स्थानांग में - इसके ४ भेद गिनाए हैं- परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत और अनुयोग ।' दृष्टिवाद के १० नामों का भी उल्लेख है--- दृष्टिवाद, हेतुवाद, भूतवाद, तच्चवाद ( तत्त्ववाद या तथ्यवाद ), सम्यग्वाद, धर्मवाद, भाषाविचय (भाषाविजय), पूर्वगत, अनुयोगगत और सर्वप्राणभूत जीवसत्त्वसुखावह । इसके अतिरिक्त उत्पादपूर्व की १० वस्तु और आस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व की १० चूलावस्तु का उल्लेख है परन्तु नाम नहीं गिनाए हैं । २ द्रव्यानुयोग के १० प्रकार गिनाए हैं- द्रव्यानुयोग, मातृका - नुयोग, एकाथि कानुयोग, करणानुयोग, अर्पितानपितानुयोग, भाविताभावितानुयोग, बाह्याबाह्यानुयोग, शाश्वताशाश्वतानुयोग, तथाज्ञानानुयोग और अतथाज्ञानानुयोग । अरिष्टनेमी के समय के चतुदश पूर्ववेत्ता मुनियों की संख्या ४०० बतलाई है । "
२. समवायाङ्ग में
दृष्टिवाद में सब भावों की प्ररूपणा की जाती है । संक्षेप से वह ५ प्रकार का है - परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका ।
(अ) परिकर्म ७ प्रकार का है - सिद्धश्रेणिका, मनुष्यश्रेणिका, पृष्टश्रेणिका, अवगाहनश्रेणिका, उपसंपद्य श्रेणिका, विप्रजहत्श्रेणिका और च्युताच्युतश्रेणिका । (१) सिद्धश्रेणिका के १४ भेद हैंमातृकापद, एकार्थ कपद, अर्थपद, पाठपद, आकाशपद, केतुभूत, राशिबद्ध, एक गुण, द्विगुण, त्रिगुण, केतुभूत प्रतिग्रह, संसारप्रतिग्रह, नन्द्यावर्त और सिद्धबद्धा । (२) मनुष्य श्रेणिका परिकर्म के ११ भेद हैं- मातृकापद से लेकर पूर्वोक्त नन्द्यावर्त तक तथा मनुष्यबद्ध । ( ३-७) पृष्ट श्रेणिका परिकर्म से लेकर शेष सभी परिकर्म - इनके ११-११ भेद हैं । मूल में इनके भेद नहीं गिनाए हैं, परन्तु नन्दी में भेदों को गिनाया गया है । सम्भवतः समवायाङ्ग के अनुसार इनके भेद मनुष्य श्रेणिका परिकर्मवत् बनेंगे, अन्तिम भेद केवल बदलता जायेगा । पूर्वोक्त सातों परिकर्म स्वसामयिक (जेनमतानुसारी) हैं, सात आजीविका मतानुसारी हैं, छः परिकर्म चतुष्कनयवालों के हैं और सात त्रैराशिक
१. स्थानाङ्गसूत्र ४.१३१ ॥
२. वही, १०.९२ ।
३. वही १०.६७-६८ ।
७७
४. वही, १०.४७ ।
५. वहीं, ४.६४७ ।
६. समवा० सूत्र ५५७-५७०.
७. समवायाङ्ग के ४६ वें समवाय में दृष्टिवाद के ४६ मातृकापदों का उल्लेख है परन्तु उनके नाम नहीं गिनाए हैं ।
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