Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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श्री कन्हैयालाल 'कमल'
उपलब्ध अनेक ज्योतिष ग्रन्थों में भी यह नक्षत्र गणना का क्रम विद्यमान है-अतः यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत नक्षत्र-भोजन-विधान का क्रम अन्य किसी ज्योतिष ग्रन्थ से उद्धृत है',
आश्चर्य यह है कि अब तक सम्पादित एवं प्रकाशित चन्द्र-सूर्यप्रज्ञप्तियों के अनुवादकों आदि ने इस सम्बन्ध में स्पष्टीकरण लिखकर व्यापक भ्रान्ति के निराकरण के लिए सत्साहस नहीं किया। कूल्माषांस्तिलतण्डलानपि तथा माषांश्च गव्यं दधि । त्याज्यं दुग्धमथैणमांसमपरं तस्यैव रक्तं तथा ।। तदुत्पायसमेव चापपललं मागं च शाशं तथा । षाष्टिवयं च प्रियग्वपूपमथवा चित्राण्डजान् सत्फलम् ।। कौर्म सारिकगोधिकं च पललं शाल्यं हविष्यं हया । वृक्षस्यान्कृसरान्नमुदमपिना पिष्टं यवानां तथा । मत्स्यान्नं खलु चित्रितान्नमथवा दध्यन्नमेवं क्रमात् । भक्ष्याऽभक्ष्यमिदं विचार्यमतिमान भक्षेत्तथाऽऽलोकयेत् ॥ नक्षत्र दोहदनिर्विघ्न यात्रा के लिए नक्षत्र भोजनों का विधान :१. अश्विनी नक्षत्र में यात्रा करते समय उड़द, जौ आदि का उपयोग करें। २. भरणी में तिल, चावल । ३. कृत्तिका में उड़द । ४. रोहिणी में गाय का दही । ५. मृगशिर से गाय का घृत । ६. आर्द्रा में गाय का दूध । ७. पुनर्वसु में हरिण का मांस । ८. पुष्य में हरिण का रक्त । ९. अश्लेषा में क्षीर। १०. मघा में पपीहा का मांस । ११. पूर्वाफाल्गुनी में हरिण का मांस । १२. उत्तराफालानी में शशक का मास । १३. हस्त में साठी चावल । १४. चित्रा में मालकांगनी । १५. स्वाति में पूआ । १६. विशाखा में चित्र-विचित्र पक्षियों के मांस । १७. अनुराधा में उत्तम फल । १८. ज्येष्ठा में कछुए का मांस । १९. मूल में सारिका पक्षी का मांस । २०. पूर्वाषाढ़ा में गोह का मांस ।
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