Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति ( ज्योतिषगणराजप्रज्ञप्ति) का पर्यवेक्षण
अनुयोग प्रवर्तक मुनि श्री कन्हैया लाल " कमल"
सामान्य अन्तर के अतिरिक्त चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति सर्वथा समान हैं इसलिए एक के परिचय से दोनों का परिचय स्वतः हो जाता है ।
उपांगद्वय- परिचय :
संकलनकर्ता द्वारा निर्धारित नाम – ज्योतिषगणराजप्रज्ञप्ति है ।
प्रारम्भ में संयुक्त प्रचलित नाम - चन्द्र-सूर्यप्रज्ञप्ति रहा होगा । बाद में उपांगद्वय के रूप में विभाजित नाम - चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति हो गए जो अभी प्रचलित हैं ।
प्रत्येक प्रज्ञप्ति में बीस प्राभृत हैं और प्रत्येक प्रज्ञप्ति में १०८ सूत्र हैं ।
तृतीय प्राभृत से नवम् प्राभृत पर्यन्त अर्थात् सात प्राभृतों में और ग्यारहवें प्राभृत बीसवें प्राभृत पर्यन्त अर्थात् दस प्राभृतों में 'प्राभृत- प्राभृत" नहीं है ।
केवल प्रथम, द्वितीय और दसवें प्राभृत में "प्राभृत प्राभृत" है ।
संयुक्त संख्या के अनुसार सत्रह प्राभृतों में प्राभृत-प्राभृत नहीं है । केवल तीन प्राभृतों में प्राभृत-प्राभृत हैं ।
उपलब्ध चन्द्र-सूर्यप्रज्ञप्ति का विषयानुक्रम वर्गीकृत नहीं है । यदि इनके विकीर्ण विषयों का वर्गीकरण किया जाए तो जिज्ञासु जगत् अधिक से अधिक लाभान्वित हो सकता है ।
वर्गीकृत विषयानुक्रम चन्द्रप्रज्ञप्ति के विषयानुक्रम की रूपरेखा
१. चन्द्र का विस्तृत स्वरूप
२. चन्द्र का सूर्य से संयोग ३. चन्द्र का ग्रह से संयोग ४. चन्द्र का नक्षत्रों से संयोग ५. चन्द्र का ताराओं से संयोग
सूर्यप्रज्ञप्ति के विषयानुक्रम की रूपरेखा
:
१. सूर्य का विस्तृत स्वरूप सूर्य का चन्द्र से संयोग
२.
सूर्य का ग्रहों से संयोग
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