Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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श्री कन्हैयालाल 'कमल'
सूर्य शब्द की रचना धू प्रेरणे धातु से "सूर्य" शब्द सिद्ध होता है। सुवति-प्रेरयति कर्मणि लोकान् इति सूर्यः । जो प्राणिमात्र को कर्म करने के लिए प्रेरित करता है वह "सूर्य' है। "सूरज" ग्रामीण जन “सूर्य'' को 'सूरज" कहते हैं। सु+ऊर्ज से सूर्ज या सूरज उच्चारण होता है। सु श्रेष्ठ-ऊर्ज = ऊर्जा = शक्ति । सूर्य से श्रेष्ठ शक्ति प्राप्त होती है ।
सूर्य के पर्याय अनेक हैं । इनमें कुछ ऐसे पर्याय हैं, जिनसे सूर्य का मानव के साथ सहज सम्बन्ध सिद्ध होता है।
सहस्रांशु :-सूर्य की सहस्र रश्मियों से प्राणियों को जो "उष्मा" प्राप्त होती है, वही जगत् के जीवों का जीवन है।
प्रत्येक मानव शरीर में जब तक उष्मा-गर्मी रहती है, तब तक जीवन है। उष्मा समाप्त होने के साथ ही जीवन समाप्त हो जाता है।
भास्कर, प्रभाकर, विभाकर, दिवाकर, घुमणि, अहति, भानु आदि पर्यायों से “सूर्य" प्रकाश देने वाला देव है।
मानव की सभी प्रवृत्तियाँ प्रकाश में ही होती हैं। प्रकाश के बिना वह अकिञ्चित् कर है । सूर्य के ताप से अनेक रोगों को चिकित्सा होती है । सौर ऊर्जा से अनेक यन्त्र शक्तियों का विकास हो रहा है । इस प्रकार मानव का सूर्य से शाश्वत सम्बन्ध है।
तथा मनोज्ञ आसन-शयन-स्तम्भ-भाण्ड-पात्र आदि उपकरण हैं और ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र स्वयं भी सौम्य, कान्त, सुभग, प्रियदर्शन एवं सुरूप है। हे गौतम ! इस कारण से चन्द्र को "शशि" ( या सश्री ) कहा जाता है ।
सूर सदस्स विसिट्टत्थंप्र० से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ-"सूरे आदिच्चे सूरे आदिच्चे" ? - उ० गोयमा ! सुरादीया णं समया इ वा, आवलिया इ वा, जाव ओसप्पिणी इ वा उस्सप्पिणी इ वा । से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ–“सूरे आदिच्चे सूरे आदिच्चे ।
भग. स. १२, उ. ६, सु. ५ सूर्य शब्द का विशिष्टार्थप्र० हे भगवन् ! सूर्य को "आदित्य' किस अभिप्राय से कहा जाता है ? उ० हे गौतम ! समय, आवलिका यावत अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी काल का आदि कारण सूर्य है।
हे गौतम ! इस कारण से सूर्य “आदित्य' कहा जाता है।
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