Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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श्रीकन्हैया लाल 'कमल' ध्रुव तारा सदा स्थिर रहकर उत्तर दिशा का बोध कराता है। शेष दिशाओं का बोध ग्रह, नक्षत्र और राशियों की नियमित गति से होता रहता है । इसलिए नौका आदि के तिरने में जो सहायक होते हैं वे तारा कहे जाते हैं।
रेगिस्तान की यात्रा रात्रि में सुखपूर्वक होती है इसलिए यात्रा के आयोजक रात्रि में तारा से दिशा बोध करते हुए यात्रा करते हैं।
तारामण्डल के विशेषज्ञ प्रान्त का, देश का शुभाशुभ जान लेते हैं इसलिए ताराओं का इस पृथ्वीतल के प्राणियों से अतिनिकट का सम्बन्ध सिद्ध है।
इस प्रकार चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारें मानव के सुख दुःख के निमित्त हैं। ग्रह शब्द को रचनाग्रह उपादाने धातु से ग्रह शब्द सिद्ध होता है । जैनागमों में छः ग्रह और आठ ग्रह का उल्लेख है,'
चन्द्र-सूर्य को ग्रहपति माना है, शेष छः को ग्रह माना है राहु-केतु को भिन्न न मानकर एक केतु को ही माना है।
अट्ठासी ग्रह भी माने हैं। अन्य ग्रन्थों में नौ ग्रह माने गये हैं।
ग्रहों के प्रभाव के सम्बन्ध में वसिष्ठ और वृहस्पति नाम के ज्योतिर्विदाचार्य ने इस प्रकार कहा है।
वसिष्ठ :ग्रहा राज्यं प्रयच्छति, ग्रहा राज्यं हरन्ति च । ग्रहेस्तु व्यापितं सर्वं, त्रैलोक्यं सचराचरम् ।। वृहस्पति :ग्रहाधीनं जगत्सर्वं ग्रहाधीना नरावराः। कालं ज्ञानं ग्रहाधीनं, ग्रहाः कर्मफलप्रदाः ।। ३२वां गोचर प्रकरण ।
वृहदैवज्ञरंजन, पृ० ८४
१. छ तारग्गहा पण्णत्ता, तं जहा१. सुक्को, २. बुहे, ३. बहस्सति, ४. अंगारके, ५. सणिच्छरे, ६. केतू ।
ठाणं अ० ६, सु० ४८१ । २. अट्ट महग्गहा पण्णत्ता तं जहा१. चंदे, २. सूरे, ३. सुक्के, ४. बुहे, ५. बहस्सति, ६. अंगारके, ७. सणिच्छरे, ८. केतू ।
ठाणं ८, सु० ६१३ ।
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