Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे
तद्धि अनेकमकाम्, यथा- क्षमते इति क्षमः क्षागुण निष्पन्नत्वादस्य गौणत्वं बोध्यम् । एवं वदतीति तपनः जलतीति जलन, पकने पुनातीति वा पचनः saaraatवैर्निष्पन्नाः, अत एवैतेषां गत्वं विज्ञेयम् । एतदुपसंहरन्नाह तदेतद् गौणमिति । किं तद् नोगणम् इति प्रश्नः । उत्तरयति
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निष्पन्न नाम ( पमाणेणं) और प्रमाण से निष्पन्न नाम । ( से किं तं गोणे ) इन दशविध नामों में से प्रथम जो गौण नाम है, उसकी प्ररूपणा निमित्त शिष्य पूछता है कि- 'हे भदन्त ! गुणों से निष्पन्नयथार्थ -गौण नाम क्या है ?
उत्तर- (गोण्णे) वह गौण नाम इस प्रकार से है - ( खमईति खमणो, तवहन्ति तबणो जलइत्ति जलगो पवइति पवणो ) " क्षमते इति क्षमणः क्षमण ऐसा नाम क्षमा गुण से निष्पन्न हुआ है-अर्थात् जिसमें क्षमागुण होता है वह उस गुण से समन्वित होने के कारण “क्षमण" इस नाम वाला कहा जाता है। अतः यह नाम गुण निष्पन्न होने से गौण - यथार्थ नाम है । " तपतीति तपनः " जो तपता है उसका नाम तपन - सूर्य है । "तान " यह नाम तपन गुण को लेकर निष्पन्न हुआ है अतः तपन गुण निषन्न यह नाम गौण है । " ज्वलतीतिज्वलनः ज्वलन यह नाम जो जलता है दीपित होता है-इस गुण को लेकर हुआ है । इसी प्रकार से "पवते इति पवनः" यहां पर भी
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निष्यन्तनाम, (संजोगेणं) सयोगथी निष्पन्न नाम ( पमाणेण) मने प्रभाणुश्री निष्पन्न नाम (से किं तं गोण्णे) या दृशविध नाभीभांधी प्रथम ने गोगु નામ છે, તેની પ્રરૂપણા માટે શિષ્ય પ્રશ્ન કરે છે કે છે ભદન્ત ! શુભેાથી निष्यन्न- यथार्थ -गौशुनाम शुद्ध छे ? (गोण्णे).
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उत्तर-ते गौशु नाम मा प्रमाणे छे (खमईत्ति खनगो तत्र त्ति तव 1. अल इत्ति जलणो पत्रइत्ति पवणो ) " क्षमते इति क्षमणः " ક્ષમ વુ' નામ ક્ષમા ગુણુથી નિષ્પન્ન થયેલ છે-એટલે કે જેમાં ક્ષમા ગુગુ હાય છે તે ક્ષમા ગુણથી સમન્વિત હેાવા બદલ ક્ષમણું આ નામથી સમેધિત કરવામાં आवे छे. आ नाम शुशु निष्पन्न होवाथी गौथु - यथार्थ - नाम छे " तपतीति तपनः "मे तये छे तेतु नाम सूर्य छे " तपन " નામ તાન ગુણુને લઈને નિષ્પન્ન થયેલ છે, માટે તપન ગુઝુ નિપુ! આ નામ ગૌણુ નામ छे. " ज्वलतीति ज्वलनः :, જ્વલન આ નામ જે પ્રલિત હાય દે દીપિત હાય તે
वाय हे. या प्रमाये " पवते
इति पत्रनः " गडी यागु
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