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अनुयोगद्वारसूत्र पावृषिकः वर्षारात्रिकः शारदः हेमन्तकः वासन्तकः गृष्मकः । स एप कालसंयोगः। अथ कोऽसौ मावसंयोगः ? भावसंयोगो द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-प्रशस्तश्च अप. शस्तश्च । अथ कोऽसौ प्रशस्तः? प्रशस्त:-ज्ञानेन ज्ञानी, दर्शनेन दर्शनी, चारित्रण चारित्री। स एप प्रशस्तः। अथ कोऽसौ अप्रशस्तः? क्रोधेन क्रोधी, मानेन मानी, यह दुस्समाज है । यह दुस्प्तम दुस्समाज है । अथवा-(पावसए वासारत्तए, सरदए, हेमंतए, वमंनए, गिम्हए) यह प्रावृषिक है, वर्षा रात्रिक है, शारद है, हेमन्तक है, वासन्तक है, ग्रीष्मक है । (से तं कालसंजोगे) इस प्रकार ये सब नाम काल के संयोग को लेकर निष्पन्न होने के कारण काल संयोगज हैं। (से कितं भावसंजोगे?) हे भदन्त ! भाव के संयोग को लेकर जो नाम उत्पन्न होता है वह कैसा होता है ?
उत्तर-(भावसंजोगे-दुविहे पण्णते) भाव संजोग को लेकर जो नाम निष्पन्न होता है, वह इस प्रकार से होता है-यह भाव संयोग दो प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है-(तंजहा) जैसे-(पसत्थे य अपनत्थे य) एक प्रशस्त भाव संयोग और दूसरा अप्रशस्त भाव संयोग। (से कित पसत्थे) हे भदन्त । प्रशस्त भाव कौन हैं ?
उत्तर-(नाणेणं नाणी, दंसणेण, दसणी, चरित्तेणं, चरित्ती) ज्ञान, दर्शन, चरित्र ये प्रशस्त भाव हैं, इनके संयोग को लेकर ज्ञान से ज्ञानी, दर्शन से दर्शनी और चारित्र से चारित्री ऐसा जो नाम (पावसए वा सारत्तए, सरदए, हेमंतए, वसंतए, गिम्हए) मा प्रावृष: छ, षा रात्रि, शा२४ छेमन्त छ, वासन्त छ मा श्रीमछे, (खेत काल संजोगे) આ પ્રમાણે આ સર્વ નામે કાળના સંગથી નિષ્પન્ન લેવા બદલ કાલ सयोग छ. (से कि त भावसंजोगे १) महत! माना सयान લઈને જે નામ થાય છે તે કેવું હોય છે.
___ उत्तर-(भाव संजोगे-दुविहे पण्णत्ते) मा सयोगना मापारे रे नाम નિષ્પન્ન થાય છે, તે આ પ્રમાણે હોય છે આ ભાવ સંગ બે પ્રકારના प्रज्ञा प्य छे. (तजहा) २ (पसत्थे य अपसत्थेय) में प्रशस्त मात्र अयोग मन भी मप्रशस्त मार सयोग (से कि त पसत्थे) 3 महन्त ! પ્રશસ્ત ભાવે કયા છે?
उत्तर-(नाणेणं नाणी दंसणेणं, दसणी, चरित्तेणं चरित्ती) ज्ञान, शन, ચારિત્ર આ પ્રશસ્ત ભાવે છે. આ ભાવના સંગથી જ્ઞાનથી જ્ઞાની, દેશનથી. દર્શની, અને ચારિથી ચારિત્રી એવાં જે નામે નિષ્પન થાય છે, તે