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अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 बाद भी धार्मिक क्रियाओं में रुचि रखते थे। चामुण्डराय ने अनेक जिनमंदिरों, मूर्तियों आदि का निर्माण, जीर्णोद्धार तथा प्रतिष्ठा कराई थी। श्रवणबेलगोला की चन्द्रगिरि पर स्वनिर्मित चामुण्डराय-वसति में इन्द्रनीलमणि की मनोज्ञ नेमिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी। विन्ध्यगिरि पर त्यागद-ब्रह्मदेव नाम का सुन्दर मानस्तम्भ बनवाया था। विश्व प्रसिद्ध बाहुबली की प्रतिमा निर्माण का श्रेय भी इनको जाता है। इन्होंने सांसारिक क्षेत्र में उन्नति करने के साथ-साथ धार्मिक क्षेत्र में भी समान ख्याति अर्जित की थी। इन गुणों का अनुकरण इनके पुत्र तथा पुत्रवधू ने भी किया था। १. चारित्रसार - आचार विषयक यह गद्यात्मक ग्रंथ संक्षेप में जैनश्रावकाचार तथा श्रमणाचार को ध्यान में रखते हुए रचा गया है। प्रारंभ में तीन अध्याय श्रावकों के विषय में है। प्रथम अध्याय में सम्यक्त्व तथा पञ्चाणुव्रतों का उल्लेख है, आगे व्रतों की परिभाषा, उनके अतिचार, रात्रि भोजन त्याग (जिसे छठाँ अणुव्रत कहा है) का वर्णन है। द्वितीय अध्याय में सप्तशीलों का वर्णन है। इसमें भी इनके अतिचारों तथा भेद-प्रभेदों का कथन है। गृहस्थ की इज्जा, वात्ती, दत्ति, स्वाध्याय, संयम, तप- इन षडावश्यकों का कथन है। इस अध्याय के अन्त में सल्लेखना का विवेचन है। तृतीयाधिकार में षोडशकरण भावना का स्वरूप दिया है। चतुर्थ अधिकार के अनगार (मुनि) धर्म का स्वरूप कहा है, जिसके आरंभ में दश धर्मों का विशद् विवेचन है। तत्पश्चात् तीन गुप्तियों तथा पांच समितियों का कथन है। संयमी निर्ग्रन्थों के भेद-प्रभेद, परीषहजय, गुणस्थानानुसार परिषह-कथन तथा अन्त में तप का वर्णन है तथा सबसे अन्त में द्वादश अनुप्रेक्षाओं का उल्लेख कर ग्रंथ का समापन किया है। चामुण्डरायकृत चारित्रसार की कतिपय विशेषताएँ :
1. चामुण्डराय की यह कृति पूर्ण रूपेण पूर्वाचार्यों का अनुकरण करती है। आद्यन्त इस ग्रंथ में विभिन्न आचार्यों के महत्वपूर्ण श्लोक, गाथा, कारिका आदि का संदर्भ देकर स्वलेखनी की पुष्टि की है। इस कारण यह ग्रंथ प्रामाणिक है। 2. जीवों के शरण एवं स्वर्ग-मोक्ष फलप्रदाता अर्थात् धर्म की महिमा