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अनेकान्त 68 /1, जनवरी-मार्च, 2015
प्रार्थना तथा सामायिक पाठों का संग्रह, हेमचन्द्र की प्रसिद्ध रचना 'परिशिष्ट पर्व' और प्राकृत गाथाओं के प्रसिद्ध जैन पाठ संग्रह, प्रवसंसारोद्वार की प्रति (इस प्रति मं १६०९ गाथाएं हैं), दिगम्बर जैन धर्म सिद्धांत पर श्रीवकोटि की कृति ‘आराधना’, शहजकुशल की रचना 'श्रुतिविचार', एक अति महत्वपूर्ण ग्रंथ - विद्वान ब्राह्मणों को जैन धर्म में लाने के लिए उनसे शास्त्रार्थ का निर्देश देने वाली - मुनिसुंदर की रचना 'वेद्यगोष्ठी', जैन नैतिकता पर रत्नशेखर की कृति 'आचार प्रदीप', जैन गृहस्थों के दायित्व के बारे में पूज्यपाद कृत उपासकाचार, देवेन्द्र कृत- प्रश्नोत्तरमाला, सोमसेन रचित जैन रामायण ‘पद्मपुराण’, कथा-संग्रह-सम्यकत्व कौमुदी कथा, एक महत्वपूर्ण कृति-भावी जिनेन्द्रों की स्तुति, अनेक पूजा विधियों, महावीर की स्तुति गाथा आदि प्राचीन पाण्डुलिपियाँ महत्वपूर्ण हैं।
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आधुनिक नगर तेर्मेज के समीप कारातेपे में उत्खनन से प्राप्त वस्तुओं में प्रथम सदी की गुफा समुच्चय, भग्न मंदिर का गर्भागृह, कलश, छत्र, कमल, चंवर के दण्ड तथा अनेक मूर्तियों के भग्नावशेष महत्वपूर्ण हैं | इतिहासकारों ने कुषाण को जैन व ब्राह्मण धर्म के पोषक के रूप में भी स्वीकार किया है, चूंकि कुषाण को बैक्ट्रिया राज्य (रूस का उज्जबेक एवं ताजिक) उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ था अतः उसके प्रभाव क्षेत्र में जिन जातियों का निवास था उसके आधार पर पूजा, आराधना गृह बनवाये गये या बन गये थे। इसी क्षेत्र में एर्ताम नामक स्थान पर उत्खनन के दौरान पहली-दूसरी सदी के मंदिर, बौद्ध बिहार व मूर्तियों के खण्ड प्राप्त हो रहे हैं जिसमें मथुरा कला का प्रभाव झलकता है । १९७९ में एर्ताम के उत्खनन में एक बड़ा मूर्ति खण्ड पाया गया है जिसके पादपीठ पर छः पंक्तियों का एक ब्राह्मी (बाख्त्रीय) अभिलेख है जिसमें २६० अक्षर पढ़े जाने योग्य हैं इसके आधार पर कुषाण की तिथि काल का पोषण होता है।
संदर्भ : १. व.व. वेर्तोगादोवा- प्राकृत भाषाएं (मास्को १९७८, हिन्दी अनु.)
२. ग.म. वोगार्द लेविन- प्राचीन भारतीय सभ्यता दर्शन, विज्ञान धर्म (मास्को १९८०)
३. न.र. गूसेवा- जैनधर्म (शोधग्रंथ-मास्को १९६८)
४. भारत विषयक ग्रंथ सूची (अंग्रेजी, मास्को १९८२)
५. ग.म. वोगार्द लेविन, अ. विगासिन - भारत की छवि (हिन्दी अनु. मास्को १९८४)
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सुमन प्रेस, जैन मंदिर मार्ग, दुर्ग (छ.ग.)