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अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 यहां से सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि आचार्यों, उपाध्यायों तथा साध-साध्वियों की मूर्तियां हैं जो अन्यत्र कम ही देखने को मिलती है। उपाध्याय की एक मूर्ति पर अभिलिखित लेख से शिष्य परम्परा का ज्ञान होता है। उपाध्याय उच्चासन पर आसीन है। उनके बाँये हाथ में पुस्तक है और दाहिना हाथ उपदेश मुद्रा में है। यहीं साहू जैन संग्रहालय की दशभुजी चक्रेश्वरी की मूर्ति आकर्षक है। यही बाहुबली गोम्मटेश्वर की कैवल्य प्राप्ति के लिए उनके द्वारा की गई कठिन तपस्या को प्रकट करने के लिए उनके शरीर पर लतापत्र बिच्छू आदि को एक स्त्री द्वारा हटाने का दृश्य बड़ा ही मनोहारी है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि देवगढ़ में मूर्ति शिल्प का विकास 5वीं से 15वीं शताब्दी तक अनवरत चलता रहा।
सिरोन खुर्द ललितपुर जिले का प्रसिद्ध जैनधर्म का केन्द्र है। यह स्थान ललितपुर जिले के उत्तर-पश्चिम में 20 कि0मी0 दूरी पर अवस्थित है। सीरोन खुर्द में ही एक बड़े शिलापट्ट पर महत्वपूर्ण अभिलेख जिसे विद्वानों ने “सीय डोणी शिलालेख" बताया है। इसे सर्वप्रथम डॉ0 हाल ने खोजा था जिसे बाद में प्रोफेसर कीलहान ने सम्पादित किया। यह सीरोन खर्द ग्राम के पूर्व में प्राप्त हआ था। इसी ग्राम के पूर्व में शांतिनाथ का मन्दिर है। जिसे बुन्देल राजाओं ने बनवाया था। इसमें शांतिनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में विशाल प्रतिमा स्थापित है। सीरोन से ही कई प्रतिमाओं का संग्रह कर 'मड़ावरा' में जैन संग्रहालय का निर्माण किया जा रहा है तथा प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धार पत्रिका माह फरवरी 2010 वर्ष 7 अंक में पृष्ठ 27 पर विस्तृत तीर्थंकरों के रंगीन चित्र प्रकाशित हुए हैं। इस स्थान से लगभग दो फर्लाग दूर एक विशाल जैन प्रतिमा खेत में पड़ी है। इसे स्थानीय लोग "बैठादेव" कहते हैं पर वास्तव में यह आसनस्थ तीर्थकर प्रतिमा है। बुन्देलखण्ड में यह विशालतम् प्रतिमा है। ___ सीरोन खुर्द देवगढ़ से मूर्तिकला में कई साम्यता रखता है। इन दोनों स्थानों पर जैनधर्म का व्यापक प्रभाव था। फलतः अनेक जैन मंदिरों का निर्माण हुआ। देवगढ़ और सीयडोणी शिलालेख में भोजदेव तथा उनके