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अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 नहीं किया गया है। प्रायः इस ग्रन्थ में उन आध्यात्मिक विचारों का संकलन है, जो साधक की साधना में सहायक हैं, वीतरागता का मार्ग प्रशस्त करने वाले हैं, अतः इनका खण्डन किए जाने की आवश्यकता भी प्रतीत नहीं होती है। कुछ स्थानों पर दार्शनिक विचार हैं, जो प्रायः जैनधर्म के अनुकूल हैं। जो कुछ अनुकूल प्रतीत नहीं होते हैं, उनका भी खण्डन न करके जैनाचार्यों द्वारा वैचारिक उदारता का ही परिचय दिया गया है।
यह भारत का सौभाग्य है कि जैन परम्परा में इस प्रकार का महत्त्वपूर्ण आगम सुरक्षित है। वाल्थर शूब्रिग जैसे जर्मन विद्वान् ने इसिभासियाई का एक महत्त्वपूर्ण संस्करण अपनी व्याख्या के साथ तैयार किया जो सन् 1974 में लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद से अज्ञातकर्तक टीका के साथ प्रकाशित हुआ। अन्य कोई टीका इस आगम पर उपलब्ध नहीं है। इसिभासियाई में 45 अध्ययन हैं। सभी अध्ययन अलग-अलग विषयों के नाम से ग्रथित हैं। मात्र बीसवें उक्कल अध्ययन में किसी ऋषि का नाम नहीं है। इसिभासियाई में प्रायः ऋषियों के नाम पर ही अध्ययनों के नाम रखे गए हैं। क्रम से ऋषियों के नाम इस प्रकार हैं1. नारद, 2. वज्जियपुत्त, 3. देविल, 4. अंगरिसी, 5. पुष्पशाल पुत्र, 6. वक्कलचीरी, 7. कुम्मापुत्त, 8. केतलिपुत्र, 9. महाकाश्यप, 10. तेतलिपुत्र, 11. मंखलि पुत्र, 12. याज्ञवल्क्य, 13. मेतार्यभयालि, 14. बाहुक, 15. मधुरायण, 16. शौर्यायण, 17. विदु, 18. वर्षपकृष्ण, 19. आर्यायण, 20. उत्कट (उक्कल) अध्ययन (ऋषि का नाम नहीं), 21. गाथापति पुत्र, 22. दकभाल, 23. रामपुत्र, 24. हरिगिरि, 25. अंबड, 26. मातंग, 27. वारत्रक, 28. आर्द्रक, 29. वर्द्धमान, 30. वायु, 31. पार्श्व, 32. पिंग, 33. अरुण, 34. ऋषिगिरि, 35. उद्दालक, 36. तारायण, 37. श्री गिरि, 38. साइपुत्त (साचिपुत्र, स्वातिपुत्र), 39. संजय, 40. द्वीपायन, 41. इन्द्रनाग, 42. सोम, 43. यम, 44. वरुण, 45. वैश्रमण।
ग्रंथ की प्रथम संग्रहणी गाथा में इन ऋषियों में 20 को तीर्थकर अरिष्टनेमि, 15 को तीर्थकर पार्श्व एवं 10 को तीर्थकर महावीर के काल का कहा गया है, किन्तु यह स्पष्ट नहीं किया गया कि कौनसे ऋषि किस तीर्थकर के काल में हुए। समणी कुसुमप्रज्ञा जी ने अपनी मति से 12 ऋषियों को महावीर कालीन, 14 ऋषियों को पार्श्वनाथ कालीन तथा 18