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अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015
डॉ. सागरमल जी के अनुसार द्रव्य लेश्या सूक्ष्म भौतिकी तत्त्वों से निर्मित वह आंगिक संरचना है, जो हमारे मनोभावों एवं तज्जनित कर्मों का सापेक्ष रूप में कारण अथवा कार्य बनती है। जिस प्रकार पित्त द्रव्य की अधिकता से स्वभाव में क्रोधीपन आता है और क्रोध के कारण पित्त की अधिकता होती है उसी प्रकार इन सूक्ष्म भौतिक तत्त्वों से मनोभाव बनते हैं। पं. सुखलाल जी एवं राजेन्द्रसूरि जी का मत देते हुए लिखते हैं कि1. लेश्या द्रव्य कर्मवर्गणा से बने हुए हैं। - उत्तराध्ययन की टीका 2. लेश्या द्रव्य बध्यमान कर्मप्रवाह रूप है। - उत्तराध्ययन की टीका 3. आचार्य हरिभद्रसूरि के अनुसार लेश्या योग परिणाम है अर्थात् शारीरिक, वाचिक एवं मानसिक क्रियाओं का परिणाम है। 4
राजवार्तिक और गोम्मटसार के अनुसार शरीर नाम कर्मोदय से उत्पन्न हुआ जो शरीर का वर्णन है उसे द्रव्य लेश्या कहते हैं।
“वण्णोदयसंपादितसरीरवण्णो दु दव्वदो लेस्सा।" द्रव्यलेश्या में छः लेश्या और पांच कर्म हैं। पुद्गल भी वर्ण, गंध, रस, स्पर्शी है अतः द्रव्यलेश्या पुद्गल है। द्रव्यलेश्या पुद्गल है अतः पुद्गल के गुण भी द्रव्यलेश्या में हैं। द्रव्यलेश्या अनन्तप्रदेशी है। द्रव्यलेश्या असंख्यातप्रदेशी क्षेत्रवगाह करती है। द्रव्यलेश्या की अनन्त वर्गणा होती है। द्रव्यलेश्या के असंख्यात स्थान है। द्रव्यलेश्या गुरु लघुत्व है। द्रव्यलेश्या जीवग्राह्य हैं। द्रव्यलेश्या परस्परपरिणामी हैं। द्रव्यलेश्या परस्पर कदाचित अपरिणामी भी है। द्रव्यलेश्या (सूक्ष्मत्व के कारण) छदमस्थ अगोचर-अज्ञेय है।
द्रव्यलेश्या अजीव-उदय-निष्पन्न भाव है क्योंकि जीव द्वारा ग्रहण होने के बाद द्रव्य लेश्या का प्रायोगिक परिणमन होता है। कृष्णादिक द्रव्यलेश्या के वर्ण, रस, स्पर्श, गन्ध लक्षण 1. कृष्ण-भ्रमर के समान काला वर्ण, रस-कड़वा। 2. नील- नील मणि के सदृश, मयूर कण्ठ के सदृश, रस-तीखा। 3. कापोत- कापोत के सदृश रस-कषायला।