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अनेकान्त 68/4 अक्टू-दिसम्बर, 2015
आहार औषधि के क्रम को नहीं जानने वाले हम व्याधितो (पीड़ितों) के लिए स्वास्थ्य रक्षा के उपाय और रोगों का नाश करने वाली क्रिया (चिकित्सा) बतलाने की कृपा करें। तब भगवान् की वाग्देवी दिव्यध्वनि प्रसारित हुई। जिसे गणधर प्रमुख ने जाना और महावीर तीर्थंकर पर्यन्त सभी तीर्थंकरों ने आयुर्वेद शास्त्र का अत्यन्त विस्तृत, दोषरहित ज्ञान दिया।
आयुर्वेद शास्त्र का मनोयोग पूर्वक अध्ययन करने वाले उसमें निष्णात व्यक्ति को ‘वैद्य' कहा जाता है ऐसा कथन मुनिजनों ने किया है। वैद्यों का शास्त्र होने से इसे वैद्यक शास्त्र कहते हैं। श्री उग्रादित्याचार्य ने वैद्य एवं आयुर्वेद शब्द को निम्न प्रकार से परिभाषित किया हैविद्येति सत्प्रकटकेवललोचनाख्या तस्यां यदेतदुपपन्नमुदारशास्त्रम्। वैद्यं वदन्ति पदशास्त्रविशेणज्ञा एतद्विचिन्त्य च पठन्ति च तेऽपि वैद्या ॥ वेदोऽयमित्यपि च बोधविचारलाभात्तत्वार्थसूचकवचः खलु धातुभेदात्। आयुश्च तेन सह पूर्वनिबद्धमुद्यच्छास्त्राभिधानमपरं प्रवदन्ति तज्ज्ञाः ॥
कल्याणकारक अ. १/१८-१९
अर्थात् अच्छी तरह से उत्पन्न केवलज्ञान रूपी चक्षु को विद्या कहते हैं। उस विद्या से उत्पन्न उदार शास्त्र को व्याकरण शास्त्र के विशेषज्ञ वैद्यशास्त्र कहते हैं। उस उदार शास्त्र को जो लोग अच्छी तरह मनन पूर्वक पढ़ते हैं वे वैद्य कहलाते हैं। यह आयुर्वेद भी कहलाता है। वेद शब्द का अर्थ वस्तु के यथार्थ स्वरूप को बतलाने वाला है यानि तत्त्व के अर्थ को प्रतिपादित करने वाले वचन । इस वेद शब्द के पहले 'आयुः ' शब्द जोड़ दिया जाय तो 'आयुर्वेद' शब्द निष्पन्न होता है। अतः उस वैद्यशास्त्र के ज्ञाता उस शास्त्र का अपर (दूसरा) नाम आयुर्वेद शास्त्र कहते हैं।
जिस शास्त्र में आयु का स्वरूप प्रतिपादित किया गया हो, जिस शास्त्र का अध्ययन करने से आयु सम्बन्धी विस्तृत ज्ञान प्राप्त होता है। अथवा जिस शास्त्र के विषय में विचार करने से हितकर आयु, अहितकर आयु, सुखकर आयु और दुखकर आयु के विषय में जानकारी प्राप्त होती है अथवा जिस शास्त्र में बतलाए हुए नियमों का पालन करने से दीर्घायु प्राप्त की जा सकती है उसका नाम आयुर्वेद है। इसी प्रकार स्वस्थ और अस्वस्थ मनुष्य की प्रकृति, शुभ और अशुभ बतलाने वाले दूत एवं अरिष्ट लक्षण इत्यादि के उपदेशों से जो शास्त्र आयु का विषय अर्थात् यह स्वल्पायु है