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अनेकान्त 68/4, अक्टू-दिसम्बर, 2015 प्रोफेसर डॉ. उदयचन्द्र जैन ने भी प्राकृत भाषा में रचित आयुर्वेद के ग्रंथ'जोणि-पाहुड़' का उल्लेख अपने एक लेख में किया है। (डॉ. उदयचन्द्र जैन का “जोणि पाहुण : एक अनुशीलन", आलेख विशेषांक में दिया जा रहा है)।
जैनाचार्यों द्वारा लिखित आयुर्वेद के ऐसे ग्रंथों की संख्या अत्यल्प है जिनका मुद्रण एवं प्रकाशन किया गया हो। अब तक जो ग्रंथ प्रकाशित किए गए हैं उनमें श्री उग्रादित्याचार्य द्वारा प्रणीत 'कल्याण कारक' ही एक मात्र ऐसा ग्रंथ है जो सर्वांगपूर्ण है और संस्कृत भाषा में निबद्ध है। इसका हिन्दी अनुवाद एवं संपादन स्व.श्री वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री द्वारा किया गया था। जो वर्तमान में उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त वैद्यसार नामक एक एक ग्रंथ का प्रकाशन जैन सिद्धान्त भवन आरा से किया गया था। इसका संपादक और हिन्दी अनुवाद आयुर्वेदाचार्य पं. सत्यन्धर कुमार जैन, काव्यतीर्थ द्वारा किया गया था। इस ग्रंथ को भी पूज्यपाद द्वारा रचित कहा जाता है, किन्तु यह सन्देहास्पद है, क्योंकि इस सम्पूर्ण ग्रंथ में विभिन्न रोगों के शमनार्थ चिकित्सा योगों का कथन किया गया है। प्रत्येक चिकित्सा योग में 5 या 6 श्लोक हैं और प्रत्येक के अन्त में पूज्यपादेन भाषितम् कथितं पूज्यपादेन, पूज्यपादोदितम् इत्यादि कथन किया गया है जिससे ध्वनित होता है कि पूज्यपाद स्वामी का कोई चिकित्सा विषयक ग्रंथ पूर्व में विद्यमान रहा होगा जिसमें इन चिकित्सा योगों को उद्धृत कर संकलित कर लिया गया है। इसके अतिरिक्त इसकी भाषा शैली भी श्री पूज्यपाद स्वामी की विद्वत्ता के अनुरूप नहीं है। अतः यह खोज का विषय है कि इस ग्रंथ का रचयिता, संग्रहकर्ता या संकलनकर्ता वस्तुतः कौन है
उपर्युक्त ग्रंथों के अतिरिक्त निम्न ग्रंथों के प्रकाशित होने की भी सूचना प्राप्त हुई है१. श्री हर्षकीर्ति सूरि द्वारा विरचित-योगचिंतामणि २. श्री हस्तिरूचि द्वारा विरचित- वैद्य वल्लभ ३. श्री अनन्त देव सूरि कृत- रसचिन्तामणि ४. श्री काण्ठ सूरि कृत- हितोपदेश वैद्यक