Book Title: Anekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 358
________________ अनेकान्त 68/4 अक्टू - दिसम्बर, 2015 इस प्रकार औषधि कर्मों का वर्गीकरण अतिवैज्ञानिक व आयुर्वेद में विकास का द्योतक है। कुछ औषधियों के स्वरस का प्रयोग मंत्रोपचार के साथ किया है। मसूरिका ( Small Pox) में वनौषधियों से निर्मित पंखे की हवा का सेवन बताया है। इसी प्रकार विषों की चिकित्सा का विशेष वर्णन किया है, जिसे 'अगदतंत्र' कहा जाता है। औषधि के अन्य प्रयोगों का वर्णन आयुर्वेद सम्मत है जैसे- अञ्जन, कर्णपूरण, नस्य, वर्तिकवल आदि । प्रमेह की चिकित्सा के उपक्रम चरक, सुश्रुत की अपेक्षा विशेषता युक्त है । प्रमेह की चिकित्सा में विभिन्न प्राणियों के मल ( The Excreta of the animals) का उपयोग बताया है। यह अनुसंधान का विषय है। पारद का उपयोग : 70 कल्याणकारक में संक्षिप्तरूप से पारद तथा उसके संस्कारों का वर्णन है। पारद से स्वर्ण निर्माण का कथन है । अनेके पारद योगों का शक्तिवर्द्धक योगों के रूप में वर्णन है। श्रृंगार प्रसाधन : कल्याणकारक में पालित नाशन, केश कृष्णीकरण, मुखकान्ति वर्द्धक आदि श्रृंगार प्रसाधन योगों का वर्णन है। विमर्श: आयुर्वेद में जैन वैद्यक परम्परा का महत्वपूर्ण योगदान है। यह प्रायोगिक तथा सैद्धान्तिक दोनों प्रकार का है। मद्य, मांस, मधु के निषेध के साथ उनका उचित पूरक बताया है। वात, पित्त, कफ, वात की सहायता से अपना कार्य संपन्न करते हैं। इस प्रकार सामान्य चिकित्सक के सरल प्रयोग परक चिकित्सा ग्रन्थ कल्याणकारक है। रोगों का वर्गीकरण दोषानुसार कर चिकित्सकों का महान उपकार किया है। इस प्रकार कल्याणकारक एक मौलिक वैज्ञानिक जैन वैद्यक परम्परा का ग्रन्थ है। ******

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