Book Title: Anekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 383
________________ अनेकान्त 68/4, अक्टू-दिसम्बर, 2015 उन्होंने कहा- एक तो मेरे घर कोई आता नहीं, मेरा भाग्य है कि कम से कम इस गरीबखाने पर कोई आया तो है। तुम्हें खाली हाथ कैसे जाने दें। चलो मेरे साथ घर में कुछ खोजते हैं, शायद कुछ मिल जाये। खोजते खोजते एक अखबार के नीचे दस रूपया का नोट मिल गया। उसे सौंपते हुए बाहर विदा देने निकला। रात बहुत हो गयी थी और ठण्ड बढ़ चली थी। मालिक बोला- इतनी रात ठण्ड में जा रहे हो यह कम्बल ही लेते जाओ। मैं तो किसी तरह रात गुजार लूँगा। चोर सोचने लगा। अभी तक मैंने चोरों के घर चोरी की है। परन्तु आज सही साहूकार मिला है, जो कह रहा है कि बाहर ठण्ड है। कम्बल लेते जाओ। घर में कुछ नहीं है, फिर भी कह रहा है कि तुम आये हो तो खाली कैसे जाने दें। धन्य है- वस्तुतः जो देता है वही साहूकार है। चोर आगे बढ़ गया। कुछ आगे बढ़ा ही था कि कुछ लोगों ने उसे देख लिया। अरे यह कम्बल तो उस भले सज्जन साधु स्वभाव वाले का है। उसे पकड़ लिया और दूसरे दिन अदालत में पेश कर दिया। गरीब भद्र मानुष ने बयान दिया- नहीं ये दस रूपये और कम्बल मैंने ही अपने हाथ से इसे दिये हैं, यह चोर कैसे हो सकता है? चोर के लिए यह अद्भुत पहला अनुभव था, कि यह कैसा व्यक्ति है? जिसके घर चोरी करने गया, वही बचा रहा है। बाहर निकलने के बाद चोर ने उसे भले आदमी के चरण पकड़ लिये। - जो जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं रखे होते हैं, वे सुख में भी दुख ढूँढते हैं, लेकिन जिसकी दृष्टि सकारात्मक होती है, वे हर घटना में सुख की खोज कर लेते हैं। 'सौ बोधकथाएँ' कृति से साभार जसपुर (छ.ग.) ******

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