Book Title: Anekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 350
________________ अनेकान्त 68/4, अक्टू-दिसम्बर, 2015 ५. श्री हंसराज द्वारा रचित- हंसराज निदान और ६. कवि विश्राम द्वारा लिखित- अनुपान मंजरी ये सभी ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। कुछ हिन्दी भाषा में रचित ग्रंथों के प्रकाशित होने की भी सूचना प्राप्त हुई है। जैसे - 1. कवि नैन सुख द्वारा लिखित वैद्य मनोत्सव, 2. कवि मेघ मुनि द्वारा रचित मेघ विनोद। इसके अतिरिक्त कन्नड़ भाषा में श्री मंगराज द्वारा लिखित ग्रंथ खगेन्द्रमणि दर्पण मद्रास विश्वविद्यालय द्वारा कन्नड़ लिपि में कन्नड़ सीरीज के अंतर्गत प्रकाशित किया गया था जो वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जैनाचार्यों द्वारा लिखित आयुर्वेद के ग्रन्थों की संख्या प्रचुर है। किन्तु यह संपूर्ण साहित्य अभी तक अंधकारवृत है। अब तो स्थिति यह होती जा रही है कि जैनाचार्यों द्वारा प्रणीत जिन ग्रंथों की रचना की सूचना या जानकारी संदर्भ रूप से जहां कहीं से भी प्राप्त होती है, उसकी खोज करने पर ज्ञात होता है कि अब उसका अस्तित्व ही हमारे सम्मुख नहीं है। संभव है किसी ग्रंथ भण्डार में किसी ग्रंथ की एकाध प्रति मिल जाय। उदाहरण के रूप में अनेक स्थलों पर स्वामी समन्तभद्र द्वारा लिखित वैद्यक ग्रंथ का उल्लेख तो मिलता है, किन्तु अभी तक वह अप्राप्त ही बना हुआ है। इसी प्रकार आयुर्वेद के एक प्रसिद्ध ग्रंथ 'योग रत्नाकर' में श्री पूज्यपाद के नाम से अनेक चिकित्सा योग उद्धृत हैं। एक अन्य आयुर्वेदीय ग्रंथ "वसव राजीयम्" में भी पूज्यपाद के नाम से अनेक औषध योगों का उल्लेख है, किन्तु प्रयत्न करने पर भी पूज्यपाद द्वारा रचित कोई चिकित्सा सम्बन्धी ग्रंथ हस्तगत नहीं हुआ है। भाषा की दृष्टि से आयुर्वेद के ग्रंथों की रचना में जैनाचार्यो योगदान अति महत्वपूर्ण है। जैनाचार्यों की यह विशेषता रही है कि तत्कालीन लोक भाषा को ध्यान में रखकर ही उन्होंने ग्रंथों की रचना की है, ताकि और जन सामान्य उन ग्रंथों से लाभ उठा सकें। जैनाचार्यों के द्वारा लिखित आयुर्वेद के जिन ग्रंथों की जानकारी वर्तमान में सुलभ है उसके अनुसार चार भाषाओं में आयुर्वेद के ग्रंथों का प्रणयन समय-समय पर

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