Book Title: Anekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 324
________________ अनेकान्त 68/4, अक्टू-दिसम्बर, 2015 १७. तिलक- भ. कुन्थुनाथ का कैवल्य वृक्ष संस्कृत- तिलक, क्षुरक, श्रीमान, पुरुष, छिन्नपुष्पक हिन्दी- तिलक, तिलिया, तिलका cifer- Wendlendia exerta D.C. हिमालय के उष्णप्रदेशीय शुष्क जंगलों में, उड़ीसा, मध्यभारत, कोंकण एवं उत्तरी डेक्कन में पाया जाता है। यह खुली हुई और छोटी-छोटी वनस्पतियों से रहित भूमि जैसे नालों के ढलान पर अधिक होता है। इसकी छाल रेचक तथा चबाने से लालास्राव वर्धक होती है। १८. आम्र- भ. अरनाथ का कैवल्य वृक्ष संस्कृत- आम्र, चूत, रसाल, सहकार, कामांग, माकन्द, अतिसौर, मधुदूत, पिकवल्लम हिन्दी- आम लैटिन- Nagbniufera indica Linn भारत में लगभग 1200 प्रकार के आम के वृक्ष पाये जाते हैं। व्यावसायिक आधार पर लगभग 25 प्रजातियों के नाम सफल हैं। इनमें दशहरी, लंगड़ा, तोतापरी, चौसा, सफेदा, कलमी, अल्फान्सो, बम्बइया, नीलम, बंगलौरा, गुलाब खस, मुलगोवा, बंगनपल्ली, पैंरी, ओलूर, स्वर्ण रेखा आदि प्रमुख है। इसकी लकड़ी, छाल, पत्ते, फल, बीज, मज्जा, गोंद आदि सभी बड़े उपयोगी हैं। इसके तने और शाखाओं की छाल से अनेक प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियाँ तैयार की जाती हैं। वृक्ष की ताजी छाल का रस पेचिश में और छाल का काढ़ा पुराने से पुराने घाव को भरने में प्रयोग किया जाता है। आम की सूखी पत्तियों का चूर्ण मधुमेह की रामबाण औषधि है। आम की बौरों की सहायता से अतिसार, प्रमेह, रक्तदोष, कफ तथा पित्त से संबन्धित अनेक औषधियाँ तैयार की जाती हैं। आम का फल (पका हुआ) हृदय रोगी के लिए विशेष रूप से लाभदायक है तो कच्चा फल लू लगने पर पने के रूप में दिया जाता है। १९. कंकेलि - भ. मल्लिनाथ का कैवल्य वृक्ष __ संस्कृत- कंकेलि, अशोक, हेमपुष्प, वञ्जुल, नट, ताम्रपल्लव, पिण्डपुष्प, गन्धपुष्प हिन्दी- अशोक लैटिन- Saraca indica Linn

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