Book Title: Anekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 346
________________ अनेकान्त 68/4, अक्टू-दिसम्बर, 2015 वह मनुष्य आयु-वर्ण-स्वर-आकृति-बल और प्रभा में देवताओं के सदृश हो जाता है। इसी प्रकार भूख और प्यास दर करने वाली अनेकों औषधियां हैं तथा सोना बनाने वाली भी अनेकों चमत्कृत गुणों से युक्त औषधियाँ हमारे यहां के पर्वतों में पैदा होती है, किन्तु दुर्भाग्यवश उनकी पूरी जानकारी न होने से इनके चमत्कृत प्रयोगों से वंचित है। ___आज की बढ़ती हुई बीमारियों को देखते हुए वैद्य समाज का कर्तव्य है कि औषधियों के प्रति हमारी उदासीनता को दूर करें। हमारी उदासीनता-प्रमाद से और सरकार से वांछित सहयोग प्राप्त न होने से हम सभी औषधियों के लाभ से वंचित हैं उनको जानकारी करके जन समुदाय के सामने लायें जिससे कि उनके विषय में अनुसंधान करके उस पद्धति से जनता जनार्दन की समुचित सेवा हो सके। । नास्ति आयुर्वेदस्य पारम्॥ श्वास-रोग का इलाज पिप्पलीलवणवर्गविपाको सर्पिरेव शमयत्यतिजीर्णम् शृंगबेरलवणान्वितभार्डी। चूर्णप्यमलतैलविमिश्रम्॥१०॥ कल्याणकारकम्-16 सर्ग पिप्पली व लवणवर्ग से सिद्ध किया हुआ घी, अत्यन्त पुरोम श्वास को शमन करता है। सोंठ लवण से युक्त भारंगी चूर्ण को निर्मल तेल में मिलाकर उपयोग करें तो श्वास के लिए हितकर है। भंगराज तेल व त्रिफला झंगराजरसविंशतिभागैः। पक्वतैलमथवा प्रतिवापम्। श्वासकासमुपहन्त्यतिशीघ्रं। त्रैफलाजलमिवाज्यसमेतम्॥११॥ हरड़ बेहड़ा, आँवले के कषाय में घी मिलाकर सेवन करने से श्वास रोग शीघ्र नाश होता है। एक भाग तिल के तेल में 20 भाग भांगरे का रस और हरड़ का कल्क डालकर सिद्ध करके सेवन करें तो श्वास रोग को शीघ्र नाश करता है। (संदर्भ- वही कल्याणकारकम् श्लोक 11)

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