Book Title: Anekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 326
________________ 38 अनेकान्त 68/4 अक्टू- दिसम्बर, 2015 इसे गुड़मार कहते हैं। मधुमेह के इलाज के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। 29 २३. धव- भ. पार्श्वनाथ का कैवल्य वृक्ष संस्कृत - धव, धट, नन्दितरु, स्थिर, धुरन्धर, गौर हिन्दी - धौरा, धौ, धव, धों, धववृक्ष लैटिन- Anogeissus lati folia wall पूर्व बंगाल तथा आसाम को छोड़कर धव का वृक्ष प्राय: भारत के सभी प्रांतों में पाया जाता है। वृक्ष बड़ा या मध्यम ऊँचाई का होता है। धव मधुर तथा कषाय रसयुक्त, शीतल एवं प्रमेह, अर्श, पाण्डु, पित्त तथा कफ का नाशक है। 30 २४. देवदारु- ( धव)- श्वे. परंपरा में देवदारु- भ. पार्श्वनाथ का कैवल्य वृक्ष संस्कृत - देवदारु, दारु, दारुभड, इन्द्रदारु, मस्तदारु, किलिम, द्रुकिलिम, सुरभूरुह हिन्दी - देवदार लैटिन - Cedrus deodaru (Roxl) Loud पश्चिमोत्तर हिमालय में कुमायूँ से पूर्व की ओर यह पाया जाता है। जौनसार ओर गढ़वाल में भी बीच का भाग देवदारु वृक्ष माला का प्रधान उत्पत्ति स्थान है। इसका वृक्ष बहुत विशाल, चिरायु और सुन्दर होता है । देवदार की सुगन्ध युक्त लकड़ी तेल से भरी होती है जिसे के लोन का तेल कहते हैं। 30 वाला है। देवदारखांसी, कण्डू और देवदारु का तेल कृमि, कुष्ठ और वात को मिटाने आम, तन्द्रा, हिक्का, ज्वर, रक्तविकार, प्रमेह, कफ, वायु का नाश करने वाला है। 1 देवदार मानवों के साथ ही पशुओं के अनेक रोगों को होता है। 2 दूर करने में प्रयुक्त संपादकीय नोट : लेखक की प्रकाशित कृति - ‘जैन आगमों में वर्णित वृक्ष एवं पर्यावरणीय अनुचिंतन ' पठनीय एवं संदर्भित है। इसे 09425005624 पर संपर्क कर प्राप्त कर सकते हैं। संदर्भ : 1. महाकवि आचार्य जिनसेन कृत आदि पुराण परिशीलन / आलेख- डॉ. सुषमा / पृष्ठ 251

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