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अनेकान्त 68/4, अक्टू-दिसम्बर, 2015 २. सप्तपर्ण - तीर्थकर अजितनाथ का कैवल्यवृक्ष
संस्कृत- सप्तपर्ण, विशालत्वक, शारद, विषमच्छद हिन्दी- सतौना, सतवन, हतिवन, सतिवन लैटिन- Alstonia scholarisR.Bs.
सुन्दर विशाल, सीधा, सदाहरित एवं छीरयुक्त सतिवन या सतौने का वृक्ष प्रायः समस्त आर्द्र प्रान्तों में पाया जाता है।
इसके सत्व के गुण कुनैन के समान हैं। प्रसूतावस्था में पहले दिन से ही इसे सुगन्धित पदार्थों (वच, अदरक, कचूर) के साथ देते रहने से ज्वर नहीं आता, अन्न ठीक से पचता है और माता का दूध बढ़ता है। __ आयुर्वेद के अनुसार सप्तपर्ण की छाल कफ, वात शामक, व्रणशोधक, रक्तशोधक, कृमिघ्न, और विषम ज्वर नाशक होती है। इसकी एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसके द्वारा बनाई गई औषधियाँ कुप्रभावहीन होती हैं।' ३. शाल (शाल-वृक्ष) तीर्थकर संभवनाथ का कैवल्य वृक्ष एवं भ. महावीर स्वामी
संस्कृत- शाल, सर्ज, कार्य, अश्वकर्णक, शत्यशम्बर हिन्दी- शाल, साल, साख, सखुआ लैटिन- ShosearobustaGaertrif
शाल के बडे और विशाल वक्ष सतलज नदी के प्रदेशों से लेकर आसाम तक. मध्य भारत के पूर्वी भाग, और छोटा नागपुर के जंगलों में बहुतायत से होते हैं।
यह व्रणशोधन, रक्तविकार, अग्निदाह, कर्णरोग, विष, कुष्ठ, प्रमेह और पाण्डु रोग का नाश करने वाला तथा मेद को सुखाने वाला है। फोड़े-फुसियों की पीड़ा शान्त करने में तथा घाव भरने में उपयोगी है। शाल के मंजन से दांतों की पीड़ा शान्त होती है। ४. सरल - भ. अभिनन्दननाथ का कैवल्य वृक्ष
संस्कृत- सरल, पीतवृक्ष, सुरभिदारूक हिन्दी- धूपसरल, चिर, चीढ़, चीड़ लैटिन- Pinus longifoliaRoxl.
चीड़ के विशाल वृक्ष सीधे (सरल) होते हैं। ये हिमालय में काश्मीर से लेकर पंजाब, उत्तरप्रदेश और आसाम तक पाये जाते हैं।