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अनेकान्त 68/4, अक्टू-दिसम्बर, 2015
संपादकीय
जैनधर्म और आयुर्वेद
डॉ. जयकुमार जैन, संपादक एवं पं. निहालचंद जैन, निदेशक
वर्तमान में चिकित्सा विज्ञान की दो विधियाँ मुख्य रूप से प्रचलित हैं। 1. ऐलापैथी चिकित्सा- जो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के रूप में विभिन्न रोगों के निदान की विधियाँ और उनके उपचार के लिए
औषधियों का विवेचन है। 2. आयुर्वेद- इसके दो प्रयोजन बतलाए गए हैं'स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य च विकारप्रशमनम्' अर्थात् स्वस्थ मनुष्यों के स्वास्थ्य का रक्षण करना एवं रोगियों के रोग का उपशमन करना। जहाँ तक जैनधर्म और चिकित्सा विज्ञान के सहसम्बन्ध की बात है, वह पूर्णत: सस्पष्ट तथ्य है कि जैनधर्म का लक्ष्य आत्मा की मक्ति है जिसे मनष्य के स्वस्थ शरीर के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
“धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम्' अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के लिए शरीर का निरोग्य होना आवश्यक है। आयुर्वेद विद्या मात्र चिकित्सा पद्धति तक ही सीमित नहीं है, अपितु यह एक समग्र जीवन विज्ञान है, जो अपनी व्यापकता के साथ दार्शनिक एवं आध्यात्मिकता से अनुप्राणित है। जैनधर्म में आयुर्वेद को 'प्राणावाय' या प्राणाय की संज्ञा से व्यवहृत किया गया है। आयुर्वेद क्या है ?
'यस्मिन् शास्त्रे आयुर्विद्यते येन आयुर्विन्दति स आयुर्वेदः। जिस शास्त्र में आयु का विषय प्रतिपादित किया गया हो और जिससे आयु सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त होता है- अर्थात् मध्यायु है या दीर्घायु है, इन सबका ज्ञान करा देता है यही आयुर्वेद है। चरक संहिता सूत्रस्थान 1/41 में कहा
हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्।