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अनेकान्त 68/4, अक्टू- दिसम्बर, 2015
प्राणावाय पूर्व (जैनायुर्वेद) और शाश्वत जीवन विज्ञान
-आचार्य राजकुमार जैन, दर्शनाचारायुर्वेदाचार्य
आयुर्वेद एक शाश्वत जीवन विज्ञान है। आयुर्वेद मानव जीवन से पृथक कोई भिन्न वस्तु या विषय नहीं है। सामान्यतः मनुष्य के जीवन की आद्यन्त प्रतिक्षण चलने वाली श्रृंखला ही आयु है, वह आयु ही जीवन है, उस आयु (जीवन) का वेद (ज्ञानी) ही आयुर्वेद है। आयुर्वेद शास्त्र केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ही उपयोगी नहीं है, अपितु मानसिक एवं बौद्धिक स्वास्थ्य के लिए भी हितावह है।
जैनागम द्वादशांग के अन्तर्गत बारहवें दृष्टिवादांग के चतुर्दश पूर्व में प्राणावाय पूर्व का प्रतिपादन किया गया है। जो वर्तमान में आयुर्वेद के नाम से जाना जाता है। जैन सिद्धान्त के अनुसार विश्व की समस्त विद्याओं और कलाओं की उत्पत्ति आद्य तीर्थकर भ. ऋषभदेव से मानी गई है। भ. ऋषभदेव के पहले सर्वत्र भोगभूमि थी, जिसमें कल्पवृक्षों का बाहुल्य था। उस समय न तो आधि-व्याधि की चिंता थी और न ही आजीविका की । शनैः शनैः कल्पवृक्षों का ह्रास हो गया और भोग भूमि का स्थान कर्मभूमि ने ले लिया। श्रम की प्रतिष्ठा बढ़ी और विद्या के प्रसार के उद्देश्य से उन्होंने सर्वप्रथम अपनी दोनों पुत्रियों ब्राह्मी और सुन्दरी को क्रमशः लिपि तथा अंक विद्या सिखाया । पुत्रियों की भांति पुत्रों को भी विभिन्न विद्याओं जैसे अर्थशास्त्र, गन्धर्व शास्त्र, कामशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद, अश्वविद्या, गजविद्या, रत्न - परीक्षा ज्योतिष, शकुनविद्या, मंत्रज्ञान, द्यूतविद्या, स्थापत्य कला आदि प्रमुख हैं।
आयुर्वेद की उत्पत्ति एवं प्रसार के सम्बन्ध में श्री उग्रादित्याचार्य ने ग्रन्थ 'कल्याणकारक' में लिखा कि भरत चक्रवर्ती आदि नरेशों ने समवशरण पहुंचकर भ. ऋषभदेव से पूछा- हे प्रभो ! बहुत से मनुष्यों को त्रिदोष ( वात-पित्त-कफ) के प्रकोप से महाभय उत्पन्न होने लगा है।' इस