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अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 संस्कृति द्वारा घोषित अपरिग्रह का व्यावहारिक दृष्टि से अवदान सिद्ध हो चुका है। विसर्जन की संजीवनी बूटी को स्वीकार कर संतोषपूर्वक सादगी व सहजता जीवन में अपनायें। आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति करें। असीमित आंकाक्षाओं का नियमन करें ताकि पूरे विश्व में सौहार्द, सदभाव, शान्ति की स्थापना हो।
महावीर व गांधी की शिक्षा है "आवश्यकता व सम्पत्ति का सीमाकरण ही हमें शान्ति की ओर प्रस्थित कर सकता है। बिना शान्ति के भौतिक सम्पन्नता एक भ्रान्ति है, जिसने वर्तमान युग को दिग्भ्रांत बना डाला। अतः व्यक्ति भी बदले व्यवस्था भी बदले तभी नये दौर की आहट संभव है। आज के युग की अपेक्षा है - "इच्छाओं का परीसीमन हो स्वयं मनुष्य का संवर्धन हो। सर्जन का मंतव्य विसर्जन-दान त्याग, संयम से संविभाग का परिवर्धन हो। अर्जन संग्रह के संरक्षण में अर्थ अनर्थ न होने पाये।" लोभ कपट तृष्णा मूर्छा में जीवन व्यर्थ न होने पाये।। संदर्भ : 1. तत्वार्थ सूत्र उमास्वामी त.स् 7/17 2. वसुनन्दी श्रावकाचार - आ. सुनिल सागर 3. राजवार्तिक 7/17/1 4. रत्नकरण्ड श्रावकाचार- आचार्य समन्तप्रभ, भारतीय अनेकान्त विद्वत परिषद 1997 - पृ. 208 5. सुरेन्द्र वर्मा, भारतीय जीवन मुल्य पेज 180, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, 1996 6. ज्ञानावर्ण (16/12) 7. कार्तिकेय अनुप्रेक्षा (386) 8. रत्नकरण्ड श्रावकाचार (15) 9. रत्नकरण्ड श्रावकाचार 10. आदिपुराण - गा. 135, पर्व वीशा द्वितीय भाग जिनसेन 11. तत्वार्थ सूत्र 6.127 12. दान कुलम - 3 13. श्रमण Jan-March 2012 Vol. LX111 Page 12 14. आदिपुराण गा. 82-85 जिनसेन पर्व विंश वही गा. 138 15. वहीं गा. 138 16. उपासक अधययन सुत्र 17. तत्वार्थ राजवार्तिक अ.9 सू. 6 18. समय सार, 34 19. आचारंग सुत्र/ प्रथम अंक 20. भगवती आ. 1683 21. आचारांग सुत्र 22. उतरा, 9/48
23. हेमचन्द्र योगशास्त्र 24.दशवैकालिक- 8,38-मधुकर मुनि 25. आ. अमृतसुरी 26. उतरा, अ. 8, गा. 26
- 1426, फ्लोरा काम्पलेक्स, देवेन्द्रधाम के पीछे,
भुवन, उदयपुर-313001 (राजस्थान)